1. समाजीकरण क्या है? (अवधारणा और अर्थ)
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना उसके विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। जब बच्चा जन्म लेता है, तो वह न तो सामाजिक होता है और न ही असामाजिक। वह केवल एक जैविक जीव होता है।
मूल परिभाषा: समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा समाज के तौर-तरीकों, नियमों, मूल्यों, मान्यताओं और संस्कृति को सीखता है और उन्हें अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बनाता है।
उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य बच्चे को समाज का एक सक्रिय और जिम्मेदार सदस्य बनाना है।
कौशल विकास: यह केवल नियमों को रटना नहीं है, बल्कि परोपकार, आत्मनिर्भरता, सहनशीलता और सामाजिक व्यवहार जैसे कौशल अर्जित करना है।
प्रमुख मनोवैज्ञानिकों के अनुसार परिभाषाएँ:
रॉस: समाजीकरण सहयोग करने वाले व्यक्तियों में "हम" की भावना का विकास करता है।
किंबल यंग: यह वह प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है और समाज का सदस्य बनता है।
2. समाजीकरण के प्रमुख सिद्धांत (Important Theories)
CTET में अक्सर विचारकों के सिद्धांतों से प्रश्न आते हैं। यहाँ तीन मुख्य सिद्धांत सरल भाषा में समझाए गए हैं:
A. स्व-दर्पण सिद्धांत (Looking Glass Self Theory) - सी.एच. कूले
प्रतिपादक: चार्ल्स हॉर्टन कूले।
मुख्य विचार: कूले का कहना है कि समाज एक "दर्पण" (आईने) की तरह है।
व्याख्या: हम अपने बारे में वैसा ही सोचते हैं जैसा समाज या लोग हमारे बारे में सोचते हैं। लोग हमारे व्यवहार पर जो प्रतिक्रिया देते हैं, उसी से हमारी 'स्व-धारणा' (Self-concept) का निर्माण होता है।
निष्कर्ष: समाजीकरण सामाजिक अंतःक्रिया पर आधारित है।
B. 'मैं' और 'मुझे' का सिद्धांत (I and Me Theory) - जी.एच. मीड
प्रतिपादक: जॉर्ज हरबर्ट मीड।
मुख्य विचार: व्यक्ति में 'स्व' (Self) का विकास 'मैं' और 'मुझे' की परस्पर क्रिया से होता है।
'मैं' (I): यह व्यक्ति का वह रूप है जो अपनी इच्छाओं और आवेगों के अनुसार कार्य करता है (असामाजिक या प्राकृतिक रूप)।
'मुझे' (Me): यह समाजीकृत रूप है। इसमें व्यक्ति यह सोचता है कि "दूसरे मेरे बारे में क्या सोचेंगे"। यह सामाजिक दबाव और नियमों का प्रतिनिधित्व करता है।
निष्कर्ष: 'मैं' और 'मुझे' का संतुलन ही व्यक्ति का संपूर्ण व्यक्तित्व बनाता है।
C. सामूहिक प्रतिनिधित्व का सिद्धांत - एमिल दुर्खीम
प्रतिपादक: एमिल दुर्खीम।
मुख्य विचार: समाज की अपनी एक अलग सोच और चेतना होती है, जिसे 'सामूहिक चेतना' कहते हैं।
व्याख्या: प्रत्येक समाज के अपने मूल्य, विश्वास, आदर्श और संस्कार होते हैं जिन्हें समाज के सभी लोग मानते हैं। बच्चा जिस समाज में जन्म लेता है, वह उस समाज के लोगों के आचरण का अनुकरण (नकल) करता है और सामाजिक बनता है।
3. समाजीकरण के प्रकार (Types of Socialization)
समाजीकरण को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जाता है:
प्राथमिक समाजीकरण (Primary Socialization)
यह जीवन की शुरुआत में होता है।
यह बच्चे के व्यक्तित्व की नींव रखता है।
इसमें बच्चा अनौपचारिक तरीके से सीखता है।
मुख्य अभिकर्ता (एजेंसी): परिवार (सबसे महत्वपूर्ण) और पास-पड़ोस के मित्र।
बच्चा भाषा, व्यवहार के बुनियादी तरीके और रिश्ते-नाते यहीं से सीखता है।
द्वितीयक या गौण समाजीकरण (Secondary Socialization)
यह बाद की अवस्थाओं में होता है जब बच्चा घर से बाहर निकलता है।
इसमें बच्चा सामुदायिक तरीके और औपचारिक व्यवहार सीखता है।
मुख्य अभिकर्ता (एजेंसी): विद्यालय, पुस्तकालय, मीडिया, धार्मिक संस्थाएं और खेल का मैदान।
4. समाजीकरण की अवस्थाएँ (Stages of Socialization)
बच्चे की उम्र बढ़ने के साथ समाजीकरण का स्वरूप बदलता रहता है:
शैशवावस्था (जन्म से 2 वर्ष)
समाजीकरण जन्म से ही शुरू हो जाता है।
बच्चा मुख्य रूप से माता-पिता पर निर्भर रहता है।
सीखने का मुख्य तरीका अनुकरण (Imitation) होता है।
प्रथम वर्ष तक बच्चे में शर्मीलापन और दूसरों का ध्यान खींचने का व्यवहार दिखता है।
प्रारंभिक बाल्यावस्था (2 से 6 वर्ष)
इसे 'खिलौनों की आयु' भी कहा जाता है।
बच्चे में जिज्ञासा बहुत अधिक होती है।
कभी-कभी आक्रामकता और जिद्दीपन दिखता है (जैसे अपनी चीजें साझा न करना)।
सहयोग और सहानुभूति की भावना की शुरुआत होती है।
उत्तर बाल्यावस्था (6 से 12 वर्ष)
इसे 'गिरोह अवस्था' (Gang Age) या स्कूल जाने की उम्र कहा जाता है।
बच्चा अपने साथियों के समूह को परिवार से अधिक महत्व देने लगता है।
प्रतियोगिता और जिम्मेदारी की भावना का विकास होता है।
पक्षपात और भेदभाव की समझ विकसित होने लगती है।
किशोरावस्था (12 से 18 वर्ष)
यह समाजीकरण की सबसे जटिल और गहन अवस्था है।
किशोर अपने मित्र समूह (Peer Group) के सक्रिय सदस्य बन जाते हैं।
विषम लिंग के प्रति आकर्षण होता है।
उनमें सामाजिक सूझ-बूझ और आत्मविश्वास बढ़ता है।
वे ऐसे मित्र बनाना पसंद करते हैं जिन पर विश्वास किया जा सके और जिनसे मन की बात कही जा सके।
5. समाजीकरण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Socialization)
बच्चे का समाजीकरण कैसा होगा, यह इन कारकों पर निर्भर करता है:
पालन-पोषण: माता-पिता का व्यवहार (स्नेहपूर्ण या कठोर) बच्चे की भावनाओं को तय करता है।
सहानुभूति: यदि बच्चे के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया जाए, तो वह दूसरों से भेदभाव करना और प्रेम करना सीखता है।
सामाजिक शिक्षण: परिवार से ही सामाजिक शिक्षा की शुरुआत होती है (खान-पान, रहन-सहन)।
पुरस्कार एवं दण्ड: अच्छे व्यवहार पर प्रशंसा (पुरस्कार) और गलत व्यवहार पर डांट (दण्ड) से बच्चा सामाजिक आदर्श सीखता है।
वंशानुक्रम: कुछ मूल प्रवृतियां और संवेग बच्चे को जन्मजात मिलते हैं जो समाजीकरण की दिशा तय करते हैं।
6. समाजीकरण के मुख्य अभिकर्ता/संस्थाएं (Agencies of Socialization)
इन संस्थाओं की भूमिका को समझना CTET के लिए अनिवार्य है:
1. परिवार (Family)
यह समाजीकरण की प्राथमिक एजेंसी है।
बच्चा सबसे पहले यहीं से प्रेम, त्याग, सहयोग और क्षमा जैसे गुण सीखता है।
माता-पिता बच्चे के पहले शिक्षक होते हैं।
परिवार की आर्थिक स्थिति और सामाजिक प्रतिष्ठा का भी बच्चे के आत्मविश्वास पर असर पड़ता है।
2. विद्यालय (School)
यह समाजीकरण की द्वितीयक एजेंसी है।
विद्यालय परिवार और बाहरी दुनिया के बीच एक पुल का काम करता है।
यहाँ बच्चा औपचारिक नियम, अनुशासन और समय प्रबंधन सीखता है।
शिक्षक का व्यवहार और स्कूल का वातावरण बच्चे के मानसिक और सामाजिक विकास को सीधा प्रभावित करता है।
स्कूली शिक्षा द्वारा बच्चा संस्कृति, इतिहास और नागरिक कर्तव्यों को जानता है।
3. मित्र समूह (Peer Group)
बच्चे जाति, धर्म और ऊँच-नीच का भेदभाव भूलकर साथ खेलते हैं।
मित्रों के साथ बच्चा अपने विचार साझा करना, नेतृत्व करना और टीम में काम करना सीखता है।
खेल के मैदान में ही हार-जीत को स्वीकारने (सहनशक्ति) का गुण विकसित होता है।
4. समुदाय और समाज (Community)
विभिन्न त्यौहार, मेले और सामाजिक उत्सव बच्चे को अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं।
जातीय और राष्ट्रीय प्रथाएं बच्चे की पहचान बनाती हैं।
5. मीडिया (Mass Media)
आज के समय में टीवी, इंटरनेट और सोशल मीडिया समाजीकरण का एक शक्तिशाली (द्वितीयक) कारक बन गया है।
यह बच्चों के विचारों, फैशन और व्यवहार को गहराई से प्रभावित कर रहा है।
7. शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher)
शिक्षक को 'सामाजिक इंजीनियर' माना जा सकता है। समाजीकरण को बेहतर बनाने के लिए शिक्षक को चाहिए कि:
अभिभावक-शिक्षक संबंध: माता-पिता के संपर्क में रहें और बच्चे की रुचियों को समझें।
आदर्श प्रस्तुति: शिक्षक स्वयं एक आदर्श व्यवहार प्रस्तुत करें क्योंकि बच्चे शिक्षक का अनुकरण करते हैं।
सामूहिक कार्य: स्कूल में खेल, नाटक और प्रोजेक्ट्स के माध्यम से समूह में कार्य करने (Team work) को बढ़ावा दें।
स्वस्थ वातावरण: कक्षा में बिना किसी भेदभाव के स्नेहपूर्ण और सहानुभूतिपूर्ण माहौल बनाए रखें।
प्रोत्साहन: बच्चों को अच्छी आदतों के लिए प्रेरित करें और उनकी सामाजिक अभिवृत्तियों का समर्थन करें।
महत्वपूर्ण स्मरणीय बिंदु (Key Points to Remember)
समाजीकरण एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है (जन्म से मृत्यु तक)।
सबसे तीव्र और जटिल समाजीकरण किशोरावस्था के दौरान होता है।
परिवार प्राथमिक कारक है, जबकि विद्यालय द्वितीयक कारक है।
खेल बच्चों में सहयोग और नियम पालन की भावना विकसित करते हैं।
सामाजिक-रचनात्मक कक्षा में सहपाठी और समूह चर्चा ज्ञान के मुख्य स्रोत होते हैं।
समाजीकरण की प्रक्रिया
Mock Test: 20 Questions | 20 Minutes
