आनुवंशिकता की संकल्पना
आनुवंशिकता को सामान्य भाषा में 'वंशानुक्रम' भी कहा जाता है। यह वह जैविक प्रक्रिया है जिसके द्वारा माता-पिता के गुण और विशेषताएँ उनकी संतानों में स्थानांतरित होती हैं।
आनुवंशिकता एक स्थिर सामाजिक संरचना है। इसका अर्थ है कि जन्म के बाद हम अपने जीन को बदल नहीं सकते।
यह प्रक्रिया गर्भाधान के समय ही निर्धारित हो जाती है।
आनुवंशिकता केवल शारीरिक गुणों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक और व्यावहारिक गुणों का भी निर्धारण करती है।
प्रमुख मनोवैज्ञानिकों की परिभाषाएँ
बी.एन. झा: वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओं का पूर्ण योग है।
वुडवर्थ: वंशानुक्रम में वे सभी बातें आ जाती हैं जो जीवन का आरंभ करते समय, जन्म के समय नहीं वरन् गर्भाधान के समय जन्म से लगभग नौ माह पूर्व व्यक्ति में उपस्थित थीं।
जेम्स ड्रेवर: माता-पिता की शारीरिक एवं मानसिक विशेषताओं का संतानों में हस्तांतरण होना ही आनुवंशिकता है।
आनुवंशिकता की प्रक्रिया और मूल इकाई
मानव शरीर कोशिकाओं से बना है और शरीर के निर्माण की मूल इकाई 'कोशिका' है। आनुवंशिकता की प्रक्रिया को समझने के लिए इसके सूक्ष्म तंत्र को समझना आवश्यक है:
संयुक्त कोष (Zygote): मानव जीवन का आरंभ केवल एक कोशिका से होता है जिसे संयुक्त कोष कहते हैं।
गुणसूत्र (Chromosomes): यह संयुक्त कोष गुणसूत्रों से निर्मित होता है। मानव शरीर की प्रत्येक कोशिका में 46 गुणसूत्र होते हैं।
जोड़े: ये गुणसूत्र 23 जोड़ों में व्यवस्थित होते हैं।
लैंगिक निर्धारण: 23 जोड़ों में से 22 जोड़े पुरुष और महिला में समान होते हैं जिन्हें 'ऑटोसोम्स' कहते हैं। 23वां जोड़ा लिंग का निर्धारण करता है।
जीन (Genes): गुणसूत्रों के अंदर अतिसूक्ष्म कण पाए जाते हैं जिन्हें 'जीन' कहते हैं। यही आनुवंशिकता के वास्तविक वाहक हैं जो गुणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ले जाते हैं।
आनुवंशिकता के प्रमुख नियम एवं सिद्धांत
बालक का विकास केवल सीधे माता-पिता के गुणों पर निर्भर नहीं करता, बल्कि यह कुछ विशिष्ट नियमों के अधीन कार्य करता है। एक शिक्षक को इन नियमों का ज्ञान होना चाहिए।
1. समानता का नियम
इस नियम के अनुसार 'जैसे माता-पिता, वैसी संतान' होती है।
बुद्धिमान माता-पिता की संतान बुद्धिमान और मंदबुद्धि माता-पिता की संतान मंदबुद्धि होती है।
यह नियम बताता है कि प्रकृति अपनी प्रजाति के गुणों को सुरक्षित रखना चाहती है।
2. विभिन्नता का नियम
यह आवश्यक नहीं है कि बच्चे हूबहू अपने माता-पिता जैसे ही हों।
इस नियम के अनुसार संतान अपने माता-पिता से कुछ भिन्न भी होती है।
एक ही माता-पिता के दो बच्चों के रंग, रूप, स्वभाव और बुद्धि में अंतर पाया जाता है।
इसका मुख्य कारण माता-पिता के उत्पादक कोषों की विशिष्ट संरचना और संयोग है।
3. प्रत्यागमन का नियम
अक्सर देखा जाता है कि बहुत प्रतिभाशाली माता-पिता की संतान कम बुद्धि वाली या सामान्य माता-पिता की संतान अत्यंत प्रतिभाशाली होती है।
जब संतान में माता-पिता के ठीक विपरीत गुण विकसित होते हैं, तो इसे प्रत्यागमन कहते हैं।
मेंडल ने अपने प्रयोगों द्वारा स्पष्ट किया था कि सुप्त गुण अगली पीढ़ियों में प्रकट हो सकते हैं।
4. बीजकोष की निरंतरता का नियम
इस नियम का प्रतिपादन वाइसमैन ने किया था।
उनके अनुसार शरीर का निर्माण करने वाला मूल जीवाणु कभी नष्ट नहीं होता।
यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होता रहता है।
इसलिए माता-पिता केवल बीजकोष के संरक्षक मात्र हैं, निर्माता नहीं।
5. गाल्टन का बायोमेट्री सिद्धांत
फ्रांसिस गाल्टन के अनुसार बच्चे को गुण केवल माता-पिता से ही नहीं मिलते।
बच्चे में 1/2 गुण माता-पिता से, 1/4 गुण दादा-दादी से, 1/8 गुण परदादा-परदादी से प्राप्त होते हैं।
इस प्रकार पिछली कई पीढ़ियों का योगदान बालक के विकास में होता है।
6. मेंडल का आनुवंशिकता का सिद्धांत
ग्रेगर जॉन मेंडल को 'आनुवंशिकता का जनक' कहा जाता है।
उन्होंने मटर के पौधों और चूहों पर प्रयोग किए थे।
उन्होंने सिद्ध किया कि गुण दो प्रकार के होते हैं: प्रभावी और अप्रभावी।
प्रभावी गुण वे हैं जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं, जबकि अप्रभावी गुण छिपे रहते हैं लेकिन अगली पीढ़ियों में प्रकट हो सकते हैं।
आनुवंशिकता का बालक पर प्रभाव
शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव
बालक की लंबाई, आंखों का रंग, बालों का प्रकार और त्वचा का रंग आनुवंशिकता द्वारा निर्धारित होता है।
कार्ल पियर्सन का मत है कि यदि माता-पिता की लंबाई अधिक है, तो बच्चों की लंबाई भी अधिक होने की संभावना रहती है।
रंग-अंधता (कलर ब्लाइंडनेस) और हीमोफिलिया जैसे रोग वंशानुगत होते हैं।
बुद्धि पर प्रभाव
गोर्डन ने अपने अध्ययनों में पाया कि बुद्धि लब्धि (IQ) पर वंशानुक्रम का गहरा प्रभाव होता है।
मंदबुद्धि माता-पिता की संतानों के मंदबुद्धि होने की संभावना अधिक होती है।
क्लार्क और कैंडोल ने सिद्ध किया कि जिन परिवारों में उच्च शिक्षा और व्यावसायिक प्रतिष्ठा थी, उनके बच्चे भी उच्च बौद्धिक क्षमता वाले थे।
मूल प्रवृत्तियों पर प्रभाव
मैकडूगल के अनुसार मूल प्रवृत्तियाँ (Instincts) वंशानुगत होती हैं।
बालक का आक्रामक व्यवहार, भय, प्रेम या जिज्ञासा का स्तर काफी हद तक उसके जीन्स पर निर्भर करता है।
वातावरण का अर्थ और व्यापकता
वातावरण का अर्थ उन सभी बाहरी शक्तियों, प्रभावों और परिस्थितियों से है जो प्राणी के जीवन, स्वभाव, व्यवहार और विकास को प्रभावित करती हैं।
वातावरण को 'पर्यावरण' या 'परिवेश' भी कहा जाता है।
यह एक गत्यात्मक (Dynamic) शक्ति है, जो बदलती रहती है।
मनोवैज्ञानिक इसे 'सामाजिक वंशानुक्रम' भी कहते हैं।
एनास्टैसौ के अनुसार: वातावरण वह हर वस्तु है जो व्यक्ति के पित्रैको (Genes) के अतिरिक्त प्रत्येक वस्तु को प्रभावित करती है।
वातावरण के प्रकार
1. आंतरिक वातावरण
यह जन्म से पूर्व का वातावरण है।
गर्भाशय के अंदर की स्थितियां बालक के प्रारंभिक विकास को तय करती हैं।
यदि माँ का स्वास्थ्य खराब है या वह तनाव में है, तो इसका सीधा प्रभाव भ्रूण पर पड़ता है।
2. बाह्य वातावरण
जन्म के बाद बालक जिस परिवेश संपर्क में आता है, उसे बाह्य वातावरण कहते हैं। इसके मुख्य उप-भाग हैं:
भौतिक वातावरण: जलवायु, भौगोलिक स्थिति, भोजन, मकान आदि। पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों का शारीरिक गठन मैदानी क्षेत्रों के लोगों से अलग होना इसका उदाहरण है।
सामाजिक वातावरण: माता-पिता, परिवार, पड़ोसी, विद्यालय, मित्र मंडली और समाज। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अतः उसकी भाषा और रहन-सहन समाज से ही बनता है।
सांस्कृतिक वातावरण: हमारे रीति-रिवाज, परंपराएं, धर्म, नैतिक मूल्य और विश्वास। यह बालक के व्यक्तित्व और दृष्टिकोण को आकार देते हैं।
मनोवैज्ञानिक वातावरण: घर और विद्यालय का प्रेमपूर्ण या तनावपूर्ण माहौल।
वातावरण का बालक पर प्रभाव
वातावरण वह जादूगर है जो एक साधारण बालक को महान वैज्ञानिक और एक प्रतिभाशाली बालक को अपराधी बना सकता है।
व्यक्तित्व निर्माण पर प्रभाव
कूले के अनुसार व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण का अधिक हाथ है।
उचित वातावरण मिलने पर साधारण बुद्धि का बालक भी जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त कर सकता है।
जुड़वाँ बच्चों पर प्रयोग (न्यूमैन और फ्रीमैन)
मनोवैज्ञानिकों ने समरूपी जुड़वाँ बच्चों (Identical Twins) को अलग-अलग वातावरण में रखकर अध्ययन किया।
एक बच्चे को गांव के खेत में और दूसरे को शहर के आधुनिक परिवेश में रखा गया।
बड़े होने पर गांव वाला बच्चा शारीरिक रूप से मजबूत लेकिन संकोची था, जबकि शहर वाला बच्चा चतुर, चिंतामुक्त और सामाजिक व्यवहार में कुशल था।
मानसिक विकास पर प्रभाव
गोर्डन ने नदी किनारे रहने वाले बच्चों का अध्ययन किया।
इन बच्चों को समाज और विद्यालय से दूर रखा गया था।
परिणामस्वरूप, उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी बुद्धि लब्धि कम होती गई। इससे सिद्ध हुआ कि उचित सामाजिक वातावरण के बिना मानसिक विकास रुक जाता है।
'एवेरॉन का जंगली बालक' (Wild Boy of Aveyron)
यह वातावरण के महत्व का सबसे बड़ा उदाहरण है।
1799 में फ्रांस के जंगलों में एक 11-12 साल का लड़का मिला जिसे भेड़ियों ने पाला था।
वह जानवरों की तरह चार पैरों पर चलता था और कच्चा मांस खाता था।
उसमें मानवीय संवेदनाएं और भाषा पूरी तरह अनुपस्थित थी क्योंकि उसे मानवीय वातावरण नहीं मिला था।
आनुवंशिकता और वातावरण की अंतःक्रिया (Nature-Nurture Interplay)
आधुनिक मनोविज्ञान में अब यह बहस नहीं होती कि आनुवंशिकता अधिक महत्वपूर्ण है या वातावरण। अब यह माना जाता है कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
वुडवर्थ का सूत्र: विकास = आनुवंशिकता × वातावरण (Development = Heredity × Environment)।
ध्यान दें कि यह योग (+) नहीं बल्कि गुणनफल (×) है। यदि इनमें से एक भी शून्य हो जाए, तो विकास शून्य हो जाएगा।
आनुवंशिकता हमें विकसित होने की क्षमताएं प्रदान करती है, जबकि वातावरण उन क्षमताओं को विकसित होने के अवसर प्रदान करता है।
बीज और खेत का उदाहरण: आनुवंशिकता 'बीज' की तरह है और वातावरण 'खेत' की तरह। यदि बीज (जीन) खराब है तो अच्छी खाद-पानी (वातावरण) भी अच्छी फसल नहीं दे सकते। उसी प्रकार, यदि बीज बहुत अच्छा है लेकिन जमीन बंजर है, तो भी पौधा नहीं पनपेगा।
लैंडिस का कथन
लैंडिस ने कहा है कि "वंशानुक्रम हमें कार्यशील पूंजी देता है और परिस्थिति (वातावरण) हमें इसको निवेश करने का अवसर प्रदान करती है।"
प्रकृति-पोषण विवाद (Nature-Nurture Debate)
बाल विकास के क्षेत्र में यह एक प्राचीन विवाद है।
प्रकृति (Nature): इसका तात्पर्य व्यक्ति की जैविक संरचना और आनुवंशिक गुणों से है। यह स्थिर मानी जाती है।
पोषण (Nurture): इसका तात्पर्य उस परिवेश, पालन-पोषण और शिक्षा से है जिसमें व्यक्ति बड़ा होता है। यह परिवर्तनशील है।
व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक (जैसे वाटसन) 'पोषण' को अधिक महत्व देते हैं। वाटसन ने कहा था, "मुझे एक दर्जन स्वस्थ शिशु दो, मैं उन्हें डॉक्टर, वकील, कलाकार या चोर कुछ भी बना सकता हूँ, चाहे उनके पूर्वज कैसे भी हों।"
वर्तमान निष्कर्ष यह है कि दोनों का संतुलन ही विकास की कुंजी है।
आनुवंशिकता और वातावरण का शैक्षिक महत्त्व
एक शिक्षक के रूप में इन दोनों कारकों का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। यह ज्ञान कक्षा शिक्षण को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करता है:
1. व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान
प्रत्येक छात्र की सीखने की गति और क्षमता अलग होती है। शिक्षक को यह समझना चाहिए कि यह अंतर आनुवंशिकता के कारण हो सकता है। इसलिए सभी बच्चों से एक समान प्रदर्शन की अपेक्षा करना अनुचित है।
2. संतुलित विकास की योजना
शिक्षक को पता होता है कि शारीरिक और मानसिक गुण वंशानुक्रम से मिले हैं, लेकिन उन्हें निखारना वातावरण का काम है। इसलिए विद्यालय में खेल-कूद, पुस्तकालय और पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का आयोजन किया जाता है।
3. वातावरण में सुधार
शिक्षक वंशानुक्रम को नहीं बदल सकता, लेकिन वह विद्यालय के वातावरण को नियंत्रित कर सकता है। एक प्रेरणादायक, भयमुक्त और लोकतांत्रिक कक्षा का वातावरण बच्चों की छिपी प्रतिभाओं को बाहर ला सकता है।
4. समस्यात्मक बालकों का निदान
यदि कोई बच्चा चोरी करता है, झूठ बोलता है या आक्रामक है, तो शिक्षक को यह विश्लेषण करना चाहिए कि यह उसके पारिवारिक परिवेश का परिणाम है या कोई वंशानुगत विकार। सही कारण जानकर ही सही उपचारात्मक शिक्षण दिया जा सकता है।
5. अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाना
जब शिक्षक यह समझ जाता है कि कुछ बच्चे 'दृश्य शिक्षार्थी' हैं और कुछ 'श्रव्य शिक्षार्थी', तो वह अपनी शिक्षण विधियों में विविधता लाता है। यह समझ वंशानुगत विभिन्नताओं के ज्ञान से ही आती है।
निष्कर्ष
संक्षेप में, बालक का विकास किसी एक कारक का परिणाम नहीं है। यह आनुवंशिकता और वातावरण रूपी ताने-बाने से बुना गया वस्त्र है। आनुवंशिकता सीमाएं निर्धारित करती है, और वातावरण उन सीमाओं के भीतर विकास का स्तर तय करता है। एक कुशल शिक्षक वही है जो बच्चे की आनुवंशिक क्षमताओं को पहचानकर उन्हें सर्वोत्तम वातावरणीय सुविधाएं प्रदान करे।
महत्वपूर्ण बिंदु: एक नज़र में
आनुवंशिकता: स्थिर सामाजिक संरचना।
वातावरण: गत्यात्मक एवं परिवर्तनशील।
विकास का सूत्र: H × E (वंशानुक्रम × वातावरण)।
गुणसूत्र: 23 जोड़े (कुल 46)।
लिंग निर्धारण: पिता का 23वां गुणसूत्र (XY) जिम्मेदार होता है।
प्रकृति: जैविक विरासत।
पोषण: परिवेशीय अनुभव।
मेंडल: आनुवंशिकता के जनक।
आनुवंशिकता और वातावरण
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