भाषा कौशल : भाषण (बोलना) और लेखन (अभिव्यंजनात्मक कौशल)

Sunil Sagare
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उत्पादक कौशल (Productive Skills): एक परिचय

भाषा शिक्षण का अंतिम लक्ष्य केवल ज्ञान ग्रहण करना नहीं, बल्कि उस ज्ञान को व्यक्त करना भी है। उत्पादक कौशल वे हैं जिनके द्वारा हम भाषा का 'उत्पादन' करते हैं।

  • वाचन कौशल (Speaking): मौखिक रूप से विचारों को व्यक्त करना।
    हिन्दी मे भाषण कौशल को वाचन कौशल(वचन शब्द से प्रेरित) भी कहा जाता है| 

  • लेखन कौशल (Writing): लिखित चिह्नों (लिपि) के माध्यम से विचारों को व्यक्त करना।

  • महत्व: यह कौशल बच्चों की सक्रिय भागीदारी को दर्शाता है। यह रटने की बजाय 'सर्जन' (Creation) पर केंद्रित है।


1. वाचन / मौखिक अभिव्यक्ति कौशल (Speaking Skill)

वाचन कौशल का अर्थ केवल बोलना नहीं है, बल्कि अपने भावों और विचारों को अर्थपूर्ण, स्पष्ट और प्रभावशाली ढंग से बोलकर अभिव्यक्त करना है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के लिए वाणी का प्रभावी होना अनिवार्य है।

मौखिक अभिव्यक्ति का महत्त्व

  • सहज माध्यम: भाषा की शिक्षा मौखिक भाषा से ही प्रारंभ होती है। यह विचारों के आदान-प्रदान का सबसे सरल और त्वरित साधन है।

  • व्यक्तित्व विकास: मधुर और प्रभावशाली वाणी व्यक्तित्व का आईना होती है। आत्मविश्वास से बोलने वाला बालक जीवन में शीघ्र प्रगति करता है।

  • सामाजिक सामंजस्य: समाज में संबंधों को सुदृढ़ बनाने और रोजमर्रा के कार्यकलापों के लिए मौखिक भाषा ही प्रमुख आधार है।

  • ज्ञान अर्जन: अशिक्षित व्यक्ति भी केवल बोलचाल और सुनकर ज्ञान अर्जित कर लेता है।

  • लिखित भाषा का आधार: जो बालक शुद्ध बोल नहीं सकता, वह प्रायः शुद्ध लिख भी नहीं पाता।

भाषण कौशल के उद्देश्य

  • शुद्ध उच्चारण: छात्रों को मानक भाषा का शुद्ध उच्चारण सिखाना।

  • निसंकोच अभिव्यक्ति: बच्चों के मन से झिझक और भय निकालकर उन्हें अपनी बात कहने के योग्य बनाना।

  • उचित लय और गति: स्वराघात, बलाघात (Stress), और विराम चिह्नों को ध्यान में रखते हुए बोलने का अभ्यास कराना।

  • व्याकरण सम्मत भाषा: बोलते समय लिंग, वचन और कारक का सही प्रयोग सिखाना।

  • धाराप्रवाहता (Fluency): बिना रुके और बिना लडखडाए विचारों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना।

  • संदर्भानुसार भाषा: प्रसंग और श्रोता (Audience) के अनुसार औपचारिक या अनौपचारिक भाषा का चयन करना।

मौखिक अभिव्यक्ति की प्रमुख विशेषताएँ

एक अच्छे वक्ता में निम्नलिखित गुण होने चाहिए:

  1. स्वाभाविकता: बोली बनावटी नहीं होनी चाहिए। वाणी में प्राकृतिक सहजता होने से वह विश्वसनीय लगती है।

  2. स्पष्टता: प्रत्येक शब्द का उच्चारण साफ होना चाहिए ताकि अर्थ का अनर्थ न हो।

  3. मधुरता: वाणी में कर्कशता नहीं होनी चाहिए। 'मधुर वाणी' श्रोताओं को आकर्षित करती है।

  4. प्रवाहमयता: बोलने में एक उचित गति होनी चाहिए—न बहुत तेज, न बहुत धीमी।

  5. अवसरानुकूल: हर्ष, शोक, उत्साह या सहानुभूति के भाव अवसर के अनुसार वाणी में झलकने चाहिए।

  6. श्रोताओं का अनुकूलन: सुनने वाले की आयु और स्तर के अनुसार शब्दावली का प्रयोग करना।

वाचन कौशल विकसित करने की शिक्षण विधियाँ

1. वार्तालाप (Conversation)

  • शिक्षक को कक्षा में अनौपचारिक बातचीत का माहौल बनाना चाहिए।

  • बच्चों को उनके घर, परिवार, खेल या त्योहारों पर बोलने का अवसर दें।

  • यह झिझक दूर करने का सबसे सशक्त माध्यम है।

2. सस्वर वाचन (Loud Reading)

  • शिक्षक के आदर्श वाचन के बाद छात्रों द्वारा किया गया अनुकरण वाचन।

  • इससे उच्चारण सुधरता है और निडरता आती है।

3. चित्र वर्णन

  • छोटी कक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी।

  • बच्चों को कोई चित्र (जैसे- मेले का दृश्य, बगीचा) दिखाकर उस पर वाक्य बोलने को कहा जाता है।

  • यह कल्पना शक्ति और अवलोकन क्षमता को बढ़ाता है।

4. कहानी सुनना और सुनाना

  • पहले शिक्षक कहानी सुनाए, फिर बच्चों को उसे अपने शब्दों में सुनाने को कहे।

  • इससे स्मरण शक्ति और क्रमबद्धता का विकास होता है।

5. प्रश्नोत्तर विधि

  • पठित पाठ पर प्रश्न पूछना।

  • छात्रों को पूर्ण वाक्यों में उत्तर देने के लिए प्रेरित करना।

6. नाटक और अभिनय (Role Play)

  • विभिन्न पात्रों (जैसे- डॉक्टर, दुकानदार, ऐतिहासिक पात्र) का अभिनय करना।

  • संवाद अदायगी (Dialogue Delivery) से भावों के अनुसार स्वर बदलना आता है।

  • यह जीवन की वास्तविक स्थितियों (Real life situations) में भाषा प्रयोग सिखाता है।

7. वाद-विवाद (Debate)

  • उच्च प्राथमिक स्तर के लिए उपयोगी।

  • तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात रखना और दूसरों की बात का सम्मान करना सिखाता है।


2. लेखन कौशल (Writing Skill)

मौखिक ध्वनियों को लिपि प्रतीकों (Symbols) के रूप में व्यक्त करना ही लेखन है। यह भाषा का स्थायी रूप है। "लिखना केवल अक्षरों को बनाना नहीं है, बल्कि यह विचारों की एक सुनियोजित अभिव्यक्ति है।"

लेखन शिक्षण के उद्देश्य

  • छात्रों को सुपाठ्य (Legible) लेख लिखने योग्य बनाना।

  • विराम चिह्नों का सही प्रयोग सिखाना।

  • व्याकरण सम्मत और शुद्ध वर्तनी (Spelling) लिखने की क्षमता।

  • विचारों को तार्किक और क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना।

  • रचनात्मक और सृजनात्मक प्रतिभा का विकास करना।

लेखन के प्रकार (Types of Writing)

1. सुलेख (Calligraphy/Good Handwriting):

  • इसका अर्थ है- सुंदर और सुडौल अक्षर लिखना।

  • प्राथमिक स्तर पर इसका बहुत महत्व है क्योंकि खराब लिखावट, अधूरी शिक्षा की निशानी मानी जाती है।

2. अनुलेख (Copying):

  • किसी लिखे हुए लेख का ज्यों-का-त्यों अनुकरण करके लिखना।

  • सुलेख पुस्तिकाओं (Cursive writing books) में ऊपर छपे अक्षरों को देखकर नीचे लिखना इसका उदाहरण है।

3. श्रुतलेख (Dictation):

  • 'श्रुत' का अर्थ है सुनना। अध्यापक बोलता है और छात्र सुनकर लिखते हैं।

  • महत्व: इससे वर्तनी (Spelling) की अशुद्धियों में सुधार होता है।

  • इससे सुनने और लिखने के बीच समन्वय (Coordination) स्थापित होता है और लिखने की गति (Speed) बढ़ती है।


लेखन का 'प्रक्रिया उपागम' (Process Approach to Writing)

(CTET के लिए सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक)

परंपरागत रूप से लेखन को केवल एक 'उत्पाद' (Product) माना जाता था (अंतिम लेख कैसा है)। लेकिन आधुनिक शिक्षाशास्त्र में लेखन को एक प्रक्रिया (Process) माना जाता है। इसमें लिखना एक बार में नहीं होता, बल्कि कई चरणों से गुजरता है।

लेखन प्रक्रिया के प्रमुख चरण (क्रमवार):

  1. मानस मंथन (Brainstorming):

    • लिखने से पहले विचारों को इकट्ठा करना।

    • विषय पर सोचना कि क्या लिखना है।

  2. रूपरेखा बनाना (Drafting/Outlining):

    • विचारों को एक क्रम देना।

    • कच्चा मसौदा (Rough Draft) तैयार करना। इसमें व्याकरण या वर्तनी पर ध्यान नहीं दिया जाता, केवल प्रवाह पर जोर होता है।

  3. पुनरावृत्ति / संशोधन (Revising):

    • लिखे हुए मसौदे को दोबारा पढ़ना।

    • यह देखना कि क्या विचार स्पष्ट हैं? क्या कुछ जोड़ने या हटाने की जरूरत है?

    • यह 'विषय-वस्तु' (Content) के सुधार पर केंद्रित है।

  4. संपादन (Editing):

    • इसमें व्याकरण, वर्तनी, विराम चिह्न और वाक्य संरचना की गलतियों को सुधारा जाता है।

    • यह 'भाषा' (Language) की शुद्धता पर केंद्रित है।

  5. अंतिम प्रारूप / प्रकाशन (Final Draft/Publishing):

    • गलतियों को सुधारकर साफ-सुथरा अंतिम लेख तैयार करना और पाठकों के सामने प्रस्तुत करना।


लेखन शिक्षण की प्रमुख विधियाँ

1. मोंटेसरी विधि (Montessori Method):

  • मोंटेसरी के अनुसार, बालक को पढ़ना सिखाने से पहले लिखना सिखाना चाहिए।

  • इसमें आँख, कान और हाथ—तीनों के समन्वय पर बल दिया जाता है।

  • बच्चे पहले लकड़ी या रेगमाल के अक्षरों पर उंगली फेरते हैं, फिर उसी आकार में पेंसिल घुमाते हैं।

2. जैकटाट विधि (Jackotot Method):

  • स्वयं-सुधार (Self-correction) पर आधारित।

  • शिक्षक एक शब्द या वाक्य लिख देता है। छात्र उसे देखकर लिखते हैं और स्वयं मूल शब्द से मिलान करके अपनी गलती सुधारते हैं।

3. रूपरेखा अनुकरण विधि (Tracing):

  • स्लेट या कॉपी पर बिंदुओं (Dots) के माध्यम से अक्षर लिखे होते हैं।

  • बच्चे उन बिंदुओं को जोड़कर अक्षर बनाना सीखते हैं।

4. स्वतंत्र अनुकरण विधि:

  • शिक्षक बोर्ड पर अक्षर लिखता है और बच्चे उसे देखकर अपनी कॉपी में लिखते हैं।


रचनात्मक लेखन (Creative Writing) और विधाएँ

लेखन केवल नकल करना नहीं है, बल्कि मौलिक विचारों की अभिव्यक्ति है। उच्च प्राथमिक स्तर पर इस पर विशेष बल दिया जाता है।

  • निबंध लेखन: किसी विषय पर क्रमबद्ध विचार।

  • पत्र लेखन: औपचारिक और अनौपचारिक संवाद।

  • कहानी लेखन: कल्पनाशीलता का विकास।

  • डायरी लेखन: अपने निजी अनुभवों और भावनाओं को शब्द देना।

  • रिपोर्ट/प्रतिवेदन: किसी घटना का आँखों देखा हाल लिखना (तथ्यात्मक)।

प्रिंट-समृद्ध वातावरण (Print-Rich Environment): लेखन और पठन दोनों के लिए कक्षा में ऐसा माहौल होना चाहिए जहाँ बच्चे शब्दों और लिखित सामग्री से घिरे हों। जैसे- दीवारों पर चार्ट, लेबल, बच्चों की रचनाएँ, आदि। यह बच्चों को स्वाभाविक रूप से लिखने के लिए प्रेरित करता है।


शिक्षक के लिए महत्वपूर्ण सुझाव (Pedagogical Tips)

  • त्रुटियों का स्वागत: शुरुआत में बच्चे गलतियाँ करेंगे। इसे सीखने का हिस्सा मानें। लाल पेन से हर गलती पर गोला न बनाएँ, इससे बच्चा हतोत्साहित होता है।

  • मौलिकता को सम्मान: रटे-रटाए उत्तरों की जगह बच्चों के अपने शब्दों और विचारों (Originality) को अधिक महत्व दें।

  • संदर्भ: लेखन और वाचन हमेशा किसी 'उद्देश्य' और 'संदर्भ' के साथ होना चाहिए। निरर्थक सुलेख लिखवाने से बेहतर है कि उन्हें अपने दिनभर के अनुभव लिखने को कहा जाए।

  • लेखन विकार (Dysgraphia): यदि कोई बच्चा लिखने में बहुत अधिक कठिनाई महसूस करता है, लिखावट बहुत खराब है, और अक्षरों को बनाने में असमर्थ है, तो वह 'डिस्ग्राफिया' से पीड़ित हो सकता है। शिक्षक को सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाना चाहिए।


परीक्षा उपयोगी सारांश (Quick Recap)

  • उत्पादक कौशल: बोलना और लिखना।

  • लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष: विचारों की मौलिक अभिव्यक्ति (Expression of ideas)।

  • सुलेख: सुंदर लिखावट।

  • श्रुतलेख: वर्तनी सुधार और सुनने की एकाग्रता के लिए।

  • डिस्ग्राफिया: लेखन संबंधी अक्षमता।

  • वाचन की विशेषता: स्पष्टता और संदर्भानुसार भाषा प्रयोग।

  • लेखन प्रक्रिया: मानस मंथन -> प्रारूप -> संशोधन -> संपादन -> प्रकाशन।



भाषा कौशल : भाषण (बोलना) और लेखन

Mock Test: 20 Questions | 20 Minutes

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