भाषा कौशल: श्रवण और पठन (ग्रहणात्मक कौशल)

Sunil Sagare
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आज के इस लेख में हम भाषा के दो प्रमुख आधारस्तंभों—श्रवण कौशल (सुनना) और पठन कौशल (पढ़ना)—पर विस्तार से चर्चा करेंगे। शिक्षाशास्त्र की भाषा में इन्हें ग्रहणात्मक कौशल (Receptive Skills) कहा जाता है, क्योंकि इनके माध्यम से विद्यार्थी ज्ञान और विचारों को ग्रहण करता है।


भाषा कौशल: एक परिचय

मनुष्य समाज में अपने विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए जिन क्रियाओं का सहारा लेता है, उन्हें भाषा कौशल कहते हैं। इनका विकास और इनमें दक्षता प्राप्त करना ही भाषा शिक्षण का मुख्य उद्देश्य है।

भाषा कौशल के चार प्रमुख स्तंभ:

  1. श्रवण कौशल (सुनना): सुनकर अर्थ ग्रहण करना।

  2. वाचन कौशल (बोलना): बोलकर विचारों को व्यक्त करना।

  3. पठन कौशल (पढ़ना): पढ़कर अर्थ ग्रहण करना।

  4. लेखन कौशल (लिखना): लिखकर विचारों को व्यक्त करना।

कौशलों का वर्गीकरण:

  • ग्रहणात्मक कौशल (Receptive Skills): श्रवण और पठन। (इनमें हम दूसरों के विचारों को ग्रहण करते हैं)।

  • अभिव्यंजनात्मक/उत्पादक कौशल (Productive Skills): वाचन और लेखन। (इनमें हम अपने विचार प्रकट करते हैं)।

  • अन्तःसम्बन्ध: ये चारों कौशल अलग-अलग नहीं सीखे जाते, बल्कि ये एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक एकीकृत रूप में विकसित होते हैं।


1. श्रवण कौशल (Listening Skill)

श्रवण कौशल का अर्थ केवल ध्वनियों को सुनना भर नहीं है, बल्कि सुनी हुई ध्वनियों, शब्दों और वाक्यों का सही अर्थ समझना और उनका भाव ग्रहण करना है। इसे अंग्रेजी में 'Listening' कहा जाता है, जो 'Hearing' (केवल सुनना) से अलग है। 'Hearing' एक शारीरिक क्रिया है, जबकि 'Listening' एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें ध्यान और अर्थ-बोध शामिल है।

श्रवण कौशल का महत्त्व

  • आधारभूत कौशल: यह अन्य सभी भाषायी कौशलों (बोलना, पढ़ना, लिखना) को विकसित करने का प्रमुख आधार है। जो बच्चा ध्यान से सुन नहीं सकता, वह शुद्ध बोल या लिख भी नहीं सकता।

  • शब्द भंडार में वृद्धि: सुनकर ही बालक नए शब्दों, मुहावरों और उनके सही प्रयोग को सीखता है।

  • उच्चारण में सुधार: शुद्ध उच्चारण सीखने के लिए आदर्श वाचन को सुनना आवश्यक है। ध्वनियों के सूक्ष्म अंतर को समझने के लिए श्रवण कौशल अनिवार्य है।

  • ध्वनि विभेदीकरण: यह ध्वनियों के बीच के सूक्ष्म अंतर को पहचानने की क्षमता विकसित करता है।

  • व्यक्तित्व विकास: एक अच्छा श्रोता ही एक अच्छा वक्ता बन सकता है। यह धैर्य और अनुशासन का गुण विकसित करता है।

श्रवण कौशल शिक्षण के उद्देश्य

  • छात्रों को श्रुत सामग्री (सुनी गई बात) को भली-भाँति समझकर अर्थ ग्रहण करने योग्य बनाना।

  • वक्ता के विचारों, भावों और उद्देश्यों को समझने की क्षमता विकसित करना।

  • धैर्यपूर्वक सुनने और सुनने के शिष्टाचार का पालन करने की आदत डालना।

  • शब्दों, मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रसंगानुकूल भाव समझने की योग्यता।

  • महत्वपूर्ण विचारों और तथ्यों का चयन करने की क्षमता (Summary making) का विकास करना।

  • स्वराघात, बलाघात और स्वर के उतार-चढ़ाव (Intonation) के अनुसार सही अर्थ समझने की योग्यता।

  • कक्षा में निर्देशों को सुनकर उनका पालन करने की क्षमता विकसित करना।

श्रवण कौशल की शिक्षण विधियाँ और गतिविधियाँ

एक शिक्षक कक्षा में निम्नलिखित गतिविधियों के माध्यम से बच्चों के सुनने के कौशल को निखार सकता है:

1. सस्वर वाचन (Loud Reading by Teacher)

  • शिक्षक द्वारा किए गए आदर्श वाचन को छात्र ध्यानपूर्वक सुनते हैं।

  • इससे उन्हें शुद्ध उच्चारण, यति, गति और आरोह-अवरोह का ज्ञान होता है।

2. प्रश्नोत्तर विधि

  • शिक्षक पाठ पढ़ाने के बाद या दौरान छात्रों से प्रश्न पूछता है।

  • यदि छात्र सही उत्तर देते हैं, तो इसका अर्थ है कि उन्होंने पाठ को ध्यानपूर्वक सुना और समझा है।

  • यह छात्रों को कक्षा में सतर्क और एकाग्र रखता है।

3. कहानी कहना और सुनना

  • यह प्राथमिक स्तर पर सबसे रोचक विधि है।

  • शिक्षक हाव-भाव के साथ कहानी सुनाते हैं और फिर बच्चों से उसी कहानी को अपने शब्दों में सुनाने को कहते हैं।

  • इससे बच्चों की एकाग्रता और सुनने की रूचि बढ़ती है।

4. श्रुतलेख (Dictation)

  • यद्यपि यह लेखन कौशल का हिस्सा है, लेकिन यह श्रवण कौशल का भी बेहतरीन परीक्षण है।

  • इसमें शिक्षक बोलता है और छात्र सुनकर लिखते हैं।

  • जो छात्र ध्यान से सुनेगा, वही शुद्ध और बिना शब्द छोड़े लिख पाएगा।

5. भाषण और वाद-विवाद

  • कक्षा में किसी विषय पर भाषण या वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित करना।

  • छात्रों को निर्देश दिया जाता है कि वे वक्ता को ध्यान से सुनें क्योंकि बाद में उनसे उस पर प्रश्न पूछे जाएंगे।

6. दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग

  • टेप रिकॉर्डर/ऑडियो क्लिप: कविताओं, कहानियों या महान व्यक्तियों के भाषण सुनाना।

  • वीडियो/चलचित्र: वीडियो में दृश्य और श्रव्य दोनों होने के कारण बच्चे इसे अधिक ध्यान से देखते और सुनते हैं।

  • रेडियो/पॉडकास्ट: आकाशवाणी या शैक्षिक पॉडकास्ट के माध्यम से ज्ञानवर्धक कार्यक्रम सुनाना।

श्रवण कौशल शिक्षण में ध्यान देने योग्य बातें (शिक्षक के लिए)

  • शिक्षक का स्वयं का उच्चारण मानक और शुद्ध होना चाहिए।

  • बोलने की गति न बहुत तेज हो और न बहुत धीमी।

  • कक्षा का वातावरण शांत होना चाहिए ताकि शोर के कारण सुनने में बाधा न आए।

  • श्रवण सामग्री बच्चों के मानसिक स्तर और रूचि के अनुकूल होनी चाहिए।

  • बच्चों को बीच-बीच में टोकने की बजाय, बात पूरी होने के बाद अपनी शंका पूछने का निर्देश दें।


2. पठन कौशल (Reading Skill)

सामान्यतः पठन कौशल का अर्थ लिपि प्रतीकों को पहचानकर उच्चारित करना माना जाता है, लेकिन शिक्षाशास्त्र में इसका अर्थ व्यापक है। "पढ़ना केवल बांचना नहीं है, बल्कि पढ़कर अर्थ ग्रहण करना ही पठन है।"

पठन एक सक्रिय मानसिक प्रक्रिया है जिसमें पाठक लिखित सामग्री के साथ अंतःक्रिया (Interaction) करता है और अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर अर्थ का निर्माण करता है।

पठन कौशल का महत्त्व

  • शिक्षा की कुंजी: समस्त विषयों (विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित) का ज्ञान पठन कौशल पर निर्भर करता है।

  • सर्वांगीण विकास: यह मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक विकास में सहायक है।

  • स्वाध्याय की प्रवृत्ति: पठन कौशल से छात्र बिना शिक्षक की सहायता के स्वयं ज्ञान अर्जित कर सकता है।

  • व्याकरणिक ज्ञान: पढ़ते समय छात्र अनजाने में ही भाषा की संरचना और व्याकरण के नियमों को आत्मसात कर लेता है।

  • शब्दावली विस्तार: विविध प्रकार की पुस्तकें पढ़ने से शब्द भंडार (Vocabulary) में तेजी से वृद्धि होती है।

  • चिंतन और कल्पना: पढ़ने से कल्पना शक्ति और आलोचनात्मक चिंतन (Critical Thinking) का विकास होता है।

पठन के प्रकार (Types of Reading)

पठन को मुख्य रूप से दो आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है:

A. स्वर के आधार पर:

  1. सस्वर पठन (Loud Reading):

    • स्वर सहित (बोल-बोलकर) पढ़ते हुए अर्थ ग्रहण करना।

    • उद्देश्य: उच्चारण सुधारना, झिझक दूर करना, आत्मविश्वास बढ़ाना, और उचित लय-गति का अभ्यास करना।

    • उपयोग: यह प्रारंभिक कक्षाओं (प्राथमिक स्तर) के लिए अधिक उपयोगी है।

    • भेद:

      • आदर्श वाचन: शिक्षक द्वारा किया जाता है।

      • अनुकरण वाचन: छात्रों द्वारा शिक्षक के पीछे-पीछे किया जाता है।

      • वैयक्तिक पठन: एक छात्र द्वारा अकेले पढ़ना।

      • सामूहिक पठन: पूरी कक्षा द्वारा एक साथ पढ़ना।

  2. मौन पठन (Silent Reading):

    • बिना होठ हिलाए, मन ही मन चुपचाप पढ़ना।

    • उद्देश्य: गहन अर्थ ग्रहण करना, स्वाध्याय की आदत डालना, और तीव्र गति से पढ़ना।

    • महत्त्व: इसमें थकान कम होती है और समय की बचत होती है। यह उच्च कक्षाओं और पुस्तकालय अध्ययन के लिए सर्वश्रेष्ठ है।

    • भेद:

      • गंभीर पठन: विषय-वस्तु की गहराई में जाकर सूक्ष्मता से पढ़ना।

      • द्रुत पठन: आनंद प्राप्ति या जानकारी के लिए तेजी से पढ़ना (जैसे उपन्यास या कहानी पढ़ना)।

B. उद्देश्य और गति के आधार पर (महत्वपूर्ण CTET शब्दावली):

  1. सरसरी तौर पर पढ़ना (Skimming):

    • पाठ्य सामग्री का केंद्रीय भाव (Central Idea) या सार जानने के लिए तेजी से पढ़ना।

    • उदाहरण: समाचार पत्र की सुर्खियाँ देखना, या पाठ का शीर्षक और निष्कर्ष पढ़कर यह तय करना कि यह उपयोगी है या नहीं।

    • लक्ष्य: सामान्य जानकारी (Gist) प्राप्त करना।

  2. बारीकी से पढ़ना (Scanning):

    • किसी विशिष्ट सूचना या तथ्य को खोजने के लिए पढ़ना।

    • उदाहरण: डिक्शनरी में कोई शब्द ढूँढना, रेलवे समय-सारणी में अपनी ट्रेन का समय देखना, या किसी प्रश्न का उत्तर पाठ में खोजना।

    • लक्ष्य: विशिष्ट जानकारी (Specific Information) प्राप्त करना।

  3. गहन पठन (Intensive Reading):

    • कक्षा में पाठ्यपुस्तक को शब्द-दर-शब्द पढ़ना।

    • इसका उद्देश्य भाषा की संरचना, व्याकरण, और नए शब्दों को बारीकी से समझना होता है।

    • यह प्रायः कक्षा शिक्षण का हिस्सा होता है।

  4. विस्तृत पठन (Extensive Reading):

    • आनंद और मजे के लिए पढ़ना।

    • इसमें पाठक हर शब्द के अर्थ पर नहीं अटकता, बल्कि समग्र प्रवाह और कहानी का आनंद लेता है।

    • उदाहरण: कॉमिक्स, बाल साहित्य या उपन्यास पढ़ना।

    • यह पठन की गति (Fluency) बढ़ाने में सहायक है।

पठन कौशल शिक्षण की विधियाँ

1. वर्ण बोध विधि (Alphabetic Method)

  • सबसे प्राचीन विधि।

  • पहले वर्ण (अ, आ, क, ख) सिखाए जाते हैं, फिर शब्द, और अंत में वाक्य।

  • दोष: यह विधि अमनोवैज्ञानिक मानी जाती है क्योंकि इससे पढ़ने की गति धीमी हो जाती है और अर्थ ग्रहण बाधित होता है।

2. देखो और कहो विधि (Look and Say Method)

  • शब्द से संबंधित चित्र दिखाकर पहले शब्द का ज्ञान कराया जाता है।

  • बच्चे चित्र और शब्द में साहचर्य (Association) स्थापित करते हैं।

  • यह मनोवैज्ञानिक विधि है।

3. वाक्य विधि (Sentence Method)

  • मनोविज्ञान का मानना है कि बालक पूर्ण इकाई (वाक्य) को पहले समझता है।

  • इसमें पहले छोटे-छोटे वाक्य पढ़ना सिखाया जाता है, फिर शब्दों और वर्णों का विश्लेषण किया जाता है।

  • इससे धाराप्रवाह पठन का विकास होता है।

4. कहानी विधि

  • वाक्य विधि का ही एक विस्तृत रूप है।

  • पूरी कहानी को चार्ट या चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।

  • बच्चे संदर्भ (Context) के आधार पर शब्दों को पहचानना सीखते हैं।

पठन संबंधी दोष और उनका निवारण

कई बार बच्चे पढ़ने में कठिनाई अनुभव करते हैं, जिसे डिस्लेक्सिया (Dyslexia) भी कहा जा सकता है (यदि यह विकार स्तर पर हो)। सामान्य त्रुटियाँ निम्नलिखित हैं:

  • अटक-अटक कर पढ़ना: आत्मविश्वास की कमी या शब्द ज्ञान का अभाव। (उपाय: सामूहिक पठन और अभ्यास)।

  • अशुद्ध उच्चारण: क्षेत्रीय बोलियों का प्रभाव। (उपाय: आदर्श वाचन और टोकना नहीं, बल्कि सुधारना)।

  • किताब को बहुत पास या दूर रखना: दृष्टि दोष। (उपाय: डॉक्टरी जाँच)।

  • भावशून्य पठन: बिना उतार-चढ़ाव के पढ़ना। (उपाय: अभिनय और कविताओं का सस्वर पाठ)।

  • उंगली रखकर पढ़ना: यह पठन गति को धीमा करता है। (उपाय: इसे धीरे-धीरे छुड़वाना चाहिए)।


श्रवण और पठन कौशल के लिए आधुनिक शिक्षण रणनीतियाँ (CTET Advanced)

आधुनिक भाषा विज्ञान में दो महत्वपूर्ण मॉडल प्रयोग किए जाते हैं जो श्रवण और पठन दोनों पर लागू होते हैं:

1. अधोमुखी प्रक्रिया (Bottom-up Approach):

  • इसमें सीखने की प्रक्रिया "भाग से पूर्ण" (Part to Whole) की ओर जाती है।

  • क्रम: ध्वनि -> वर्ण -> शब्दांश -> शब्द -> वाक्यांश -> वाक्य -> पाठ।

  • इसमें पहले बुनियादी इकाइयों को डिकोड करने पर जोर दिया जाता है।

2. ऊर्ध्वगामी प्रक्रिया (Top-down Approach):

  • इसमें सीखने की प्रक्रिया "पूर्ण से भाग" (Whole to Part) की ओर जाती है।

  • क्रम: अर्थ/संदर्भ -> पाठ -> वाक्य -> शब्द -> वर्ण।

  • इसमें पाठक/श्रोता अपने पूर्व ज्ञान (Background Knowledge) और अनुमान (Prediction) का उपयोग करके अर्थ समझता है।

  • उदाहरण: कहानी का शीर्षक पढ़कर अंदर की सामग्री का अनुमान लगाना।

निष्कर्ष: सफल भाषा शिक्षण के लिए आवश्यक है कि कक्षा में 'प्रिंट-समृद्ध वातावरण' (Print-Rich Environment) हो। दीवारों पर चार्ट, पोस्टर, और कक्षा में बाल साहित्य की उपलब्धता बच्चों को पढ़ने और सुनने के लिए प्रेरित करती है। शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चों को केवल पाठ्यपुस्तक तक सीमित न रखे, बल्कि उन्हें विविध संदर्भों में भाषा प्रयोग के अवसर दे। याद रखें, एक अच्छा 'इनपुट' (श्रवण और पठन) ही एक बेहतरीन 'आउटपुट' (वाचन और लेखन) का निर्माण करता है।


परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण बिंदु (One-Liners)

  • भाषा कौशल का सही क्रम: सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना (L-S-R-W)। (यद्यपि आधुनिक मत के अनुसार ये एकीकृत हैं)।

  • ग्रहणात्मक कौशल: सुनना और पढ़ना।

  • अभिव्यंजनात्मक कौशल: बोलना और लिखना।

  • मौन पठन: स्वाध्याय और अर्थ ग्रहण के लिए सर्वश्रेष्ठ।

  • सस्वर पठन: उच्चारण सुधार और आत्मविश्वास के लिए।

  • पठन का अर्थ: अर्थ ग्रहण करना (Decoding + Comprehension)।

  • स्किमिंग (Skimming): केंद्रीय भाव या सार ढूँढना।

  • स्कैनिंग (Scanning): विशिष्ट तथ्य या सूचना ढूँढना।

  • श्रुतलेख: वर्तनी शुद्धता और श्रवण ध्यान के लिए।

  • सहज अभिव्यक्ति: भाषा सीखने का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य।

 



भाषा कौशल: श्रवण और पठन

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