5.1 भाषायी विविधता या बहुभाषिकता: एक परिचय
बहुभाषिकता क्या है?
दो या दो से अधिक भाषाओं को सहजता और प्रवाह के साथ बोलने/समझने की क्षमता को बहुभाषिकता कहते हैं।
यह केवल बहुत सी भाषाएं जानना नहीं है, बल्कि विभिन्न सामाजिक संदर्भों में उचित भाषा का प्रयोग करना भी है।
भारतीय संदर्भ: बहुभाषिकता भारतीय अस्मिता (Identity) का अभिन्न अंग है। भारत में 1600 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं, जो 5 विभिन्न भाषा-परिवारों से आती हैं।
एक दूर-दराज के गाँव का व्यक्ति भी अपने दैनिक जीवन में कई भाषाओं या बोलियों के शब्दों का प्रयोग करता है, जो उसे विभिन्न परिस्थितियों में संवाद करने में सक्षम बनाते हैं।
संवैधानिक स्थिति:
संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है।
स्कूलों में पठन-पाठन के लिए लगभग 47 भाषाओं का प्रयोग माध्यम के रूप में किया जाता है।
अनुच्छेद 343(1) के अनुसार हिंदी भारत की 'राजभाषा' (Official Language) है, राष्ट्रभाषा नहीं।
अंग्रेजी को 'सह-राजभाषा' (Associate Official Language) का दर्जा प्राप्त है।
5.2 बहुभाषिकता: समस्या नहीं, संसाधन है
पारंपरिक रूप से यह माना जाता था कि कक्षा में अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले बच्चे होने से शिक्षण में बाधा आती है। लेकिन आधुनिक शोध और NCF 2005 ने इस दृष्टिकोण को पूरी तरह बदल दिया है।
संसाधन (Resource) के रूप में बहुभाषिकता:
संज्ञानात्मक विकास: शोध बताते हैं कि द्विभाषी या बहुभाषी बच्चों का संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) एकभाषी बच्चों की तुलना में बेहतर होता है।
रचनात्मकता: ऐसे बच्चे अधिक रचनात्मक होते हैं और उनमें 'संज्ञानात्मक लचीलापन' (Cognitive Flexibility) पाया जाता है। वे किसी समस्या के समाधान के लिए एक से अधिक दृष्टिकोण अपना सकते हैं।
सामाजिक सहिष्णुता: विभिन्न भाषाओं के संपर्क में आने से बच्चे दूसरी संस्कृतियों का सम्मान करना सीखते हैं, जिससे उनमें सामाजिक सहिष्णुता और विस्तृत चिंतन का विकास होता है।
अकादमिक उपलब्धि: बहुभाषिक क्षमता और शैक्षिक सम्प्राप्ति (Scholastic Achievement) के बीच सकारात्मक संबंध है।
शिक्षक के लिए निर्देश:
शिक्षक को बहुभाषिकता को एक 'जटिल समस्या' के रूप में नहीं, बल्कि एक 'संसाधन' और 'रणनीति' के रूप में देखना चाहिए।
बच्चों की मातृभाषा को कक्षा में सम्मान देना चाहिए और उसे 'स्वीकार्य' बनाना चाहिए।
जब बच्चा अपनी मातृभाषा में अपने विचार व्यक्त करता है, तो वह अधिक आत्मविश्वास महसूस करता है और सीखने की प्रक्रिया से जुड़ता है।
कक्षा में विभिन्न भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करना (जैसे- पानी को विभिन्न भाषाओं में क्या कहते हैं?) शब्द भंडार और सांस्कृतिक ज्ञान को बढ़ाता है।
5.3 त्रिभाषा सूत्र (Three Language Formula)
भारत की भाषायी विविधता को संतुलित करने और राष्ट्रीय सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए 'त्रिभाषा सूत्र' लागू किया गया। इसकी सिफारिश कोठारी आयोग (1964-66) द्वारा की गई थी और इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968, 1986, 2020) में अपनाया गया।
सूत्र का स्वरूप: इस सूत्र के अंतर्गत स्कूली शिक्षा में तीन भाषाओं को पढ़ाने का प्रावधान है:
1. प्रथम भाषा (First Language):
यह अनिवार्य रूप से बच्चे की मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिए।
प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होना चाहिए ताकि बच्चा सहजता से सीख सके।
2. द्वितीय भाषा (Second Language):
हिंदी भाषी राज्यों में: कोई भी आधुनिक भारतीय भाषा (जैसे- तमिल, बांग्ला, मराठी) या अंग्रेजी।
गैर-हिंदी भाषी राज्यों में: हिंदी या अंग्रेजी।
उद्देश्य: हिंदी और गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों के बीच संपर्क स्थापित करना।
3. तृतीय भाषा (Third Language):
हिंदी भाषी राज्यों में: अंग्रेजी या कोई अन्य आधुनिक भारतीय भाषा (जो द्वितीय भाषा के रूप में न ली गई हो)।
गैर-हिंदी भाषी राज्यों में: अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा (जो प्रथम और द्वितीय भाषा न हो)।
त्रिभाषा सूत्र के उद्देश्य:
राष्ट्रीय एकता और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाना।
विभिन्न राज्यों के बीच संवाद के अंतर को पाटना।
बच्चों को बहुभाषी और बहुसंस्कृतिवादी बनाना।
5.4 भाषायी विविधता वाली कक्षा की चुनौतियाँ
यद्यपि विविधता एक संसाधन है, लेकिन व्यावहारिक रूप से एक शिक्षक को कक्षा में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
1. क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव:
छात्रों के उच्चारण और वाक्य संरचना पर उनकी क्षेत्रीय बोली का गहरा प्रभाव होता है।
उदाहरण: बिहार का बच्चा 'स्कूल' को 'इसकूल' बोल सकता है या पंजाब का बच्चा अलग टोन (Tone) का प्रयोग कर सकता है। इसे 'त्रुटि' नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि सीखने का एक चरण माना जाना चाहिए।
2. संप्रेषण कौशल (Communication Skills):
अलग-अलग भाषायी पृष्ठभूमि के कारण बच्चों को मानक भाषा (Standard Language) में अपने विचार रखने में कठिनाई हो सकती है।
शिक्षक को यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी बच्चा भाषा के कारण खुद को उपेक्षित या पीछे छूटा हुआ महसूस न करे।
3. शिक्षक की सीमाएं:
भारत में इतनी भाषाएं हैं कि किसी भी शिक्षक के लिए उन सभी का ज्ञान होना असंभव है।
ऐसे में शिक्षक को 'फैसिलिटेटर' की भूमिका निभानी पड़ती है और छात्रों को ही एक-दूसरे को सिखाने के लिए प्रेरित करना होता है।
4. पाठ्यपुस्तकों की सीमा:
पाठ्यपुस्तकें आमतौर पर मानक भाषा में होती हैं, जो कुछ बच्चों के लिए कठिन हो सकती हैं।
समाधान: एनसीएफ 2005 के अनुसार, पाठ्यपुस्तकों में स्थानीय लोकगीतों, कहानियों और शब्दावली को शामिल किया जाना चाहिए।
5.5 कक्षा-कक्ष प्रबंधन की रणनीतियाँ (Strategies)
एक शिक्षक के रूप में आपको विविधता को कैसे संभालना चाहिए?
मातृभाषा का सम्मान: बच्चों को कक्षा में अपनी भाषा बोलने से कभी न रोकें। यदि वे अपनी भाषा में बोलते हैं, तो उन्हें सुनें और फिर लक्ष्य भाषा (Target Language) में उसी बात को दोहराएं (Rephrasing), न कि डांटें।
बहुभाषिक इनपुट: कक्षा में 'बहुभाषिक चार्ट', 'दीवार पत्रिकाएं' और विभिन्न भाषाओं की कविताओं का प्रयोग करें।
सहयोगात्मक अधिगम: अलग-अलग भाषायी पृष्ठभूमि वाले बच्चों के समूह बनाएं ताकि वे एक-दूसरे से सीख सकें (Peer Learning)।
अनुवाद (Translation) से बचें: केवल अनुवाद विधि का प्रयोग न करें, बल्कि संदर्भ (Context), चित्रों और हाव-भाव का प्रयोग करके दूसरी भाषा सिखाएं।
कोड स्विचिंग (Code Switching): बोलते समय एक भाषा से दूसरी भाषा के शब्दों का प्रयोग करना स्वाभाविक है। इसे कक्षा में स्वीकार किया जाना चाहिए।
5.6 राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और भाषा
NEP 2020 भाषा शिक्षण पर बहुत स्पष्ट और क्रांतिकारी दृष्टिकोण रखती है:
मातृभाषा पर जोर: कम से कम कक्षा 5 तक (और वरीयता कक्षा 8 तक) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा/स्थानीय भाषा/घर की भाषा होगी।
शास्त्रीय भाषाएं: संस्कृत और अन्य शास्त्रीय भाषाओं (तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, उड़िया, पाली, फारसी, प्राकृत) को विकल्प के रूप में हर स्तर पर उपलब्ध कराया जाएगा।
विदेशी भाषाएं: माध्यमिक स्तर पर विदेशी भाषाओं (कोरियाई, जापानी, थाई, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश आदि) को ऐच्छिक विषय के रूप में पढ़ाया जाएगा।
कोई थोपी गई भाषा नहीं: किसी भी राज्य या छात्र पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। त्रिभाषा सूत्र लचीला होगा।
भारतीय संकेत भाषा (ISL): बधिर छात्रों के लिए ISL का मानकीकरण किया जाएगा और शिक्षण सामग्री विकसित की जाएगी।
5.7 भाषायी विकार (Language Disorders)
CTET में भाषायी अक्षमताओं (Learning Disabilities related to Language) पर प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं। इन्हें समझना महत्वपूर्ण है:
1. डिस्लेक्सिया (Dyslexia) - पठन विकार:
यह पढ़ने से संबंधित विकार है।
लक्षण: बच्चा शब्दों को पहचानने में कठिनाई महसूस करता है, 'b' और 'd' या 'saw' और 'was' में अंतर नहीं कर पाता। पढ़ते समय शब्दों को छोड़ देता है या अटकता है।
उपाय: बड़े अक्षरों वाली किताबें, ऑडियो बुक्स और दृश्य माध्यमों का प्रयोग।
2. डिस्ग्राफिया (Dysgraphia) - लेखन विकार:
यह लिखने से संबंधित अक्षमता है।
लक्षण: खराब हस्तलेखन (Handwriting), शब्दों के बीच अनियमित जगह छोड़ना, अक्षरों का आकार छोटा-बड़ा होना, सीधी रेखा में न लिख पाना।
उपाय: लिखित कार्य का बोझ कम करना, मौखिक परीक्षाओं को बढ़ावा देना।
3. डिस्प्रेक्सिया (Dyspraxia):
यह एक गति-समन्वय (Motor coordination) विकार है, जो बोलने और लिखने दोनों को प्रभावित कर सकता है क्योंकि इसमें मांसपेशियों का नियंत्रण शामिल होता है (जैसे पेन पकड़ना या जीभ हिलाना)।
4. अफेजिया/डिस्फेजिया (Aphasia/Dysphasia) - भाषा संप्रेषण विकार:
यह भाषा को समझने और व्यक्त करने से संबंधित विकार है।
लक्षण: बच्चा दूसरों की बात समझने में कठिनाई महसूस करता है या अपने विचारों को शब्दों में ढालने में असमर्थ होता है। यह अक्सर मस्तिष्क में किसी चोट या विकार के कारण होता है।
5. डिस्कैलकुलिया (Dyscalculia):
यद्यपि यह गणितीय विकार है, लेकिन इसमें भी भाषायी समस्या हो सकती है जैसे गणितीय प्रतीकों या शब्द समस्याओं (Word Problems) को पढ़ने और समझने में कठिनाई।
5.8 महत्वपूर्ण अवधारणाएं (Important Concepts)
कोड मिक्सिंग (Code Mixing):
बोलते समय एक भाषा के वाक्यों में दूसरी भाषा के शब्दों को मिला देना।
उदाहरण: "मैं बहुत happy हूँ क्योंकि आज holiday है।"
कोड स्विचिंग (Code Switching):
वार्तालाप के दौरान प्रसंग या परिस्थिति के अनुसार पूरी तरह से एक भाषा से दूसरी भाषा में बदल जाना।
उदाहरण: घर पर हिंदी में बात करना और डॉक्टर के पास जाते ही अंग्रेजी में बात करना शुरू कर देना।
भाषा अर्जन (Acquisition) vs भाषा अधिगम (Learning):
अर्जन: यह एक प्राकृतिक और अवचेतन प्रक्रिया है। बच्चा अपने परिवार और आस-पास के माहौल से बिना किसी औपचारिक शिक्षण के भाषा सीखता है (जैसे मातृभाषा)।
अधिगम: यह एक चेतन और प्रयासपूर्ण प्रक्रिया है। इसमें व्याकरण, नियम और औपचारिक शिक्षण की आवश्यकता होती है (जैसे स्कूल में दूसरी भाषा सीखना)।
स्टीफन क्रैशेन (Stephen Krashen) के अनुसार, दूसरी भाषा भी 'अर्जित' की जा सकती है यदि समृद्ध भाषायी परिवेश मिले।
निमज्जन (Immersion):
जब किसी बच्चे को ऐसी जगह रखा जाता है जहाँ सारा कामकाज और पढ़ाई किसी नई भाषा (लक्ष्य भाषा) में ही होती है, तो इसे निमज्जन कहते हैं। यह भाषा सीखने का एक प्रभावी तरीका माना जाता है।
परीक्षा उपयोगी त्वरित तथ्य (Quick Facts for Exam)
भाषा का प्राथमिक रूप: सांकेतिक (Sign Language) होता है (बच्चा सबसे पहले इशारों में बात करता है)।
भाषा और विचार (वाइगोत्स्की vs पियाजे):
वाइगोत्स्की: भाषा और विचार शुरू में स्वतंत्र होते हैं, बाद में मिल जाते हैं। भाषा विचार को निर्देशित करती है। (निजी वाक/Private Speech महत्वपूर्ण है)।
पियाजे: विचार पहले आते हैं, भाषा बाद में। भाषा विचारों का अनुसरण करती है। (अहंकेंद्रित वाक/Egocentric Speech को कम महत्व)।
नॉम चॉम्स्की: बच्चों में भाषा सीखने की क्षमता जन्मजात (Innate) होती है। उनके मस्तिष्क में 'भाषा अर्जन यंत्र' (Language Acquisition Device - LAD) होता है।
बहुभाषिकता: संज्ञानात्मक विकास और विद्वत उपलब्धि (Scholastic Achievement) में सकारात्मक भूमिका निभाती है।
त्रुटियाँ (Errors): सीखने की प्रक्रिया का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। इन्हें तुरंत ठीक करने के बजाय प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि बच्चा बोलना बंद न करे।
निष्कर्ष और शिक्षक के लिए सुझाव
एक समावेशी कक्षा में, भाषायी विविधता को एक उत्सव की तरह मनाया जाना चाहिए। जब एक शिक्षक बच्चे की घरेलू भाषा ("Home Language") को स्वीकार करता है, तो वह वास्तव में उस बच्चे की पहचान ("Identity") को स्वीकार कर रहा होता है।
आप क्या कर सकते हैं:
बच्चों को उनकी भाषा में गीत/कहानियां सुनाने को कहें।
कक्षा में सामान्य वस्तुओं पर विभिन्न भाषाओं के लेबल लगाएं।
गलतियों को सीखने के संकेत (Window to learning) मानें।
रटने (Rote Learning) के बजाय भाषा के प्रयोग (Usage) पर जोर दें।
भाषायी विविधता वाली कक्षा
Mock Test: 20 Questions | 20 Minutes
