1. वैयक्तिक विभिन्नता का अर्थ और अवधारणा
प्रकृति का यह अटल नियम है कि संसार में कोई भी दो व्यक्ति पूर्ण रूप से एक जैसे नहीं होते। यहाँ तक कि जुड़वाँ बच्चों में भी शक्ल-सूरत मिलने के बावजूद उनके स्वभाव, बुद्धि, और रुचियों में अंतर पाया जाता है।
विशिष्टता: प्रत्येक बालक अपने आप में विशिष्ट (Unique) होता है।
मूल अर्थ: जब दो बालकों में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक या सामाजिक गुणों के आधार पर अंतर पाया जाता है, तो इसे वैयक्तिक विभिन्नता कहते हैं।
ऐतिहासिक तथ्य: वैयक्तिक विभिन्नताओं का वैज्ञानिक अध्ययन सबसे पहले सर फ्रांसिस गाल्टन ने किया था।
प्रमुख मनोवैज्ञानिकों की परिभाषाएँ
परीक्षा के दृष्टिकोण से ये परिभाषाएँ सीधी पूछी जाती हैं:
स्किनर (Skinner): "वैयक्तिक विभिन्नताओं से हमारा तात्पर्य व्यक्तित्व के उन सभी पहलुओं से है, जिनका मापन व मूल्यांकन किया जा सकता है।"
जेम्स ड्रेवर: "कोई व्यक्ति अपने समूह के शारीरिक तथा मानसिक गुणों के औसत से जितनी भिन्नता रखता है, उसे वैयक्तिक भिन्नता कहते हैं।"
टॉयलर (Tyler): "शरीर के रूप-रंग, आकार, कार्य, गति, बुद्धि, ज्ञान, उपलब्धि, रुचि, अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली भिन्नता को वैयक्तिक भिन्नता कहते हैं।"
2. वैयक्तिक विभिन्नता के प्रमुख प्रकार
मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्नताओं को कई आधारों पर वर्गीकृत किया है। मुख्य रूप से इसे दो भागों में समझा जा सकता है:
अन्तर-वैयक्तिक विभिन्नता (Inter-individual Differences): दो अलग-अलग व्यक्तियों के बीच का अंतर।
अन्तः-वैयक्तिक विभिन्नता (Intra-individual Differences): एक ही व्यक्ति के भीतर विभिन्न गुणों में अंतर (जैसे एक बच्चा गणित में तेज हो सकता है लेकिन खेल में कमजोर)।
विस्तृत वर्गीकरण निम्नलिखित है:
A. शारीरिक आधार पर विभिन्नता
यह सबसे स्पष्ट दिखाई देने वाली विभिन्नता है।
इसमें रंग, रूप, शारीरिक गठन, कद, भार, और यौन-भेद शामिल हैं।
उदाहरण: कक्षा में कुछ बच्चे औसत ऊंचाई के होते हैं, कुछ बहुत लम्बे और कुछ नाटे।
शारीरिक परिपक्वता (Physical Maturity) भी बच्चों में अलग-अलग समय पर आती है। लड़कियाँ लड़कों की तुलना में किशोरावस्था में जल्दी परिपक्व होती हैं।
B. मानसिक या बुद्धि के आधार पर विभिन्नता
बुद्धि-लब्धि (IQ) के आधार पर सभी बालक समान नहीं होते।
टर्मन और अन्य मनोवैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि समाज में बुद्धि का वितरण एक जैसा नहीं है।
वर्गीकरण:
प्रतिभाशाली बालक (IQ 140+)
औसत बुद्धि बालक (IQ 90-110)
मन्दबुद्धि बालक (IQ 70 से कम)
एक ही कक्षा में शिक्षक को इन तीनों स्तरों के बच्चों को पढ़ाना होता है।
C. भाषा और संचार के आधार पर विभिन्नता
भाषा भी एक कौशल है और इसके विकास की दर हर बच्चे में अलग होती है।
कुछ बच्चे बहुत छोटी उम्र में धाराप्रवाह बोलना सीख जाते हैं, जबकि कुछ को समय लगता है।
शब्द-भंडार और अभिव्यक्ति की शैली में भी अंतर होता है।
लड़कियों का भाषाई विकास लड़कों की तुलना में अक्सर जल्दी प्रारंभ होता है।
D. व्यक्तित्व (Personality) के आधार पर विभिन्नता
यह एक बहुत महत्वपूर्ण कारक है।
युंग (Jung) ने व्यक्तित्व को तीन भागों में बांटा है:
अन्तर्मुखी: जो अपने आप में खोए रहते हैं, कम बोलते हैं।
बहिर्मुखी: जो सामाजिक होते हैं, जल्दी दोस्त बनाते हैं।
उभयमुखी: जिनमें दोनों गुण होते हैं।
शिक्षक को यह समझना होता है कि अन्तर्मुखी बच्चा कक्षा में प्रश्न पूछने में हिचकिचा सकता है।
E. संवेगात्मक (Emotional) आधार पर विभिन्नता
बालकों के संवेग (क्रोध, प्रेम, भय) प्रकट करने के तरीके अलग-अलग होते हैं।
कुछ बच्चे बहुत शांत स्वभाव के होते हैं, जबकि कुछ चिड़चिड़े या आक्रामक हो सकते हैं।
कुछ बालक छोटी-छोटी बातों पर उदास हो जाते हैं, जबकि कुछ कठिन परिस्थितियों में भी प्रसन्न रहते हैं।
F. रुचि और अभिवृत्ति (Attitude) में विभिन्नता
एक ही परिवार के बच्चों की रुचियाँ (Interests) अलग हो सकती हैं।
किसी को संगीत पसंद हो सकता है, तो किसी को खेल या गणित।
अभिवृत्ति का अर्थ है किसी विषय या व्यक्ति के प्रति नजरिया। कुछ बच्चों का पढ़ाई के प्रति नजरिया सकारात्मक होता है, जबकि कुछ का नकारात्मक।
G. गत्यात्मक कौशल (Motor Skills) में विभिन्नता
शारीरिक क्रियाओं को करने की क्षमता।
कुछ बच्चे लिखने, चित्र बनाने या खेलने में बहुत निपुण होते हैं।
कुछ बच्चों में सूक्ष्म गत्यात्मक कौशल (Fine Motor Skills) जैसे सुई में धागा डालना या अच्छी लिखावट, देर से विकसित होते हैं।
3. वैयक्तिक विभिन्नता के प्रमुख कारण
परीक्षा में अक्सर प्रश्न आता है कि वैयक्तिक विभिन्नता का मुख्य कारण क्या है? इसका सही उत्तर हमेशा "वंशानुक्रम और वातावरण की अन्तःक्रिया" होता है।
1. वंशानुक्रम (Heredity)
यह वह गुण है जो बच्चे को अपने माता-पिता और पूर्वजों से जीन के माध्यम से मिलता है।
शारीरिक संरचना: लम्बाई, आँखों का रंग, बालों का प्रकार पूरी तरह वंशानुक्रम पर निर्भर करता है।
मानसिक क्षमता: बुद्धि का एक बड़ा हिस्सा जन्मजात होता है।
मूल प्रवृतियाँ: कुछ स्वभावगत गुण भी माता-पिता से मिलते हैं।
2. वातावरण (Environment)
वातावरण उन सभी बाहरी कारकों को संदर्भित करता है जो जन्म के बाद बच्चे को प्रभावित करते हैं।
परिवार: परिवार का माहौल, आर्थिक स्थिति और पालन-पोषण का तरीका बच्चे के व्यक्तित्व को आकार देता है।
विद्यालय: शिक्षा का स्तर, शिक्षकों का व्यवहार और सहपाठी समूह।
समाज और संस्कृति: बच्चा किस समुदाय में रहता है, वहां की भाषा और रीति-रिवाज क्या हैं।
पोषण: बचपन में मिला भोजन शारीरिक और मानसिक विकास को सीधे प्रभावित करता है।
3. जाति, राष्ट्र और संस्कृति का प्रभाव
विभिन्न देशों और संस्कृतियों के लोगों में व्यवहार और सोच का अंतर होता है।
उदाहरण: भारतीय संस्कृति में पले-बढ़े बच्चे और पश्चिमी संस्कृति के बच्चों के मूल्यों में अंतर होगा।
4. आयु और परिपक्वता (Age and Maturity)
जैसे-जैसे बालक की आयु बढ़ती है, उसका शारीरिक और मानसिक विकास बदलता है।
परिपक्वता का स्तर सीखने की क्षमता को प्रभावित करता है। एक 5 साल का बच्चा वह अमूर्त चिंतन नहीं कर सकता जो 12 साल का बच्चा कर सकता है।
5. लिंग भेद (Gender Differences)
यद्यपि बुद्धि और सीखने की क्षमता में लड़के और लड़कियों में कोई जन्मजात अंतर नहीं होता।
लेकिन, शारीरिक बनावट और सामाजिक भूमिकाओं के कारण उनकी रुचियों और कार्यशैली में अंतर देखा जा सकता है।
ध्यान दें: "गणित में लड़कियाँ कमजोर होती हैं" यह एक रूढ़िबद्ध धारणा (Stereotype) है, न कि वैज्ञानिक तथ्य।
4. वैयक्तिक विभिन्नता जानने की विधियाँ
एक शिक्षक अपनी कक्षा में बच्चों की विभिन्नताओं का पता कैसे लगा सकता है? इसके लिए मनोवैज्ञानिकों ने कई विधियाँ बताई हैं:
निरीक्षण विधि (Observation Method): शिक्षक कक्षा में बच्चों के व्यवहार को ध्यानपूर्वक देखता है।
परीक्षण विधि (Testing):
बुद्धि परीक्षण (Intelligence Test)
व्यक्तित्व परीक्षण (Personality Test)
उपलब्धि परीक्षण (Achievement Test)
व्यक्ति इतिहास विधि (Case History Method): समस्यात्मक बालकों के लिए उनके परिवार, मित्रों और पड़ोसियों से जानकारी एकत्र करना।
संचयी अभिलेख (Cumulative Record): विद्यालय में बच्चे का शुरू से लेकर अब तक का पूरा रिकॉर्ड (उपस्थिति, स्वास्थ्य, मार्क्स) देखना।
साक्षात्कार (Interview): बच्चे से सीधे बातचीत करके उसकी समस्याओं और रुचियों को समझना।
5. शिक्षा के क्षेत्र में वैयक्तिक विभिन्नता का महत्त्व
CTET के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण खंड है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली बाल-केन्द्रित शिक्षा पर आधारित है, जिसका आधार ही वैयक्तिक विभिन्नता है।
A. पाठ्यक्रम का निर्धारण
पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए।
इसे सभी प्रकार के बच्चों (औसत, प्रतिभाशाली और पिछड़े) की आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए।
उदाहरण: प्राथमिक स्तर पर पाठ्यक्रम गतिविधि आधारित और रोचक होना चाहिए, जबकि उच्च स्तर पर तार्किक।
B. कक्षा का वर्गीकरण
प्राचीन समय में केवल आयु के आधार पर कक्षा तय होती थी।
मनोविज्ञान के अनुसार, मानसिक आयु और रुचियों के आधार पर भी छात्रों का वर्गीकरण किया जा सकता है।
समरूप समूह (Homogeneous grouping) बनाने से शिक्षण आसान हो जाता है, लेकिन समावेशी शिक्षा में विषम रूपी (Heterogeneous) समूहों को भी महत्व दिया जाता है ताकि बच्चे एक-दूसरे से सीख सकें।
C. शिक्षण विधियों का चयन
एक ही शिक्षण विधि सभी बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती।
शिक्षक को विभेदी अनुदेशन (Differentiated Instruction) का प्रयोग करना चाहिए।
किंडरगार्टन, मोंटेसरी, डाल्टन, और प्रोजेक्ट विधि जैसी आधुनिक विधियाँ वैयक्तिक विभिन्नता को ध्यान में रखकर ही बनाई गई हैं।
श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग करके विभिन्न अधिगम शैली (Visual, Auditory, Kinesthetic) वाले बच्चों को मदद मिलती है।
D. कक्षा का आकार (Class Size)
यदि कक्षा में बहुत अधिक छात्र होंगे, तो शिक्षक व्यक्तिगत ध्यान नहीं दे पाएगा।
आदर्श रूप से, छोटी कक्षाओं में वैयक्तिक विभिन्नताओं को संबोधित करना आसान होता है।
RTE 2009 के अनुसार प्राथमिक स्तर पर छात्र-शिक्षक अनुपात 30:1 होना चाहिए।
E. गृहकार्य (Homework) में विविधता
सभी बच्चों को एक जैसा गृहकार्य देना अनुचित है।
प्रतिभाशाली बच्चों को चुनौतीपूर्ण कार्य और कमजोर बच्चों को अभ्यास आधारित कार्य दिया जाना चाहिए।
F. शारीरिक दोषों का ध्यान
यदि कोई बच्चा कम सुनता है या उसे कम दिखाई देता है, तो शिक्षक को उसे कक्षा में आगे बिठाना चाहिए।
ऐसे बच्चों के लिए विशेष उपकरणों की व्यवस्था करना भी शिक्षक का दायित्व है।
G. निर्देशन और परामर्श (Guidance and Counselling)
बच्चों को उनके करियर या विषय चयन में मदद करने के लिए उनकी व्यक्तिगत योग्यताओं को जानना जरूरी है।
व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाने के लिए व्यक्तिगत परामर्श आवश्यक है।
6. विभेदी अनुदेशन (Differentiated Instruction)
यह अवधारणा परीक्षा में बार-बार पूछी जाती है। इसका अर्थ है:
शिक्षकों द्वारा एक ही कक्षा में अलग-अलग क्षमताओं वाले बच्चों को पढ़ाने के लिए अलग-अलग रणनीतियों का उपयोग करना।
यह भेदभाव करना नहीं है, बल्कि 'जरूरत के अनुसार' शिक्षण है।
उदाहरण: एक पाठ पढ़ाने के बाद, कुछ बच्चों को शिक्षक दोबारा समझा सकते हैं, कुछ को वर्कशीट दे सकते हैं और कुछ को उस विषय पर प्रोजेक्ट बनाने को कह सकते हैं।
7. निष्कर्ष: शिक्षक की भूमिका
वैयक्तिक विभिन्नता का ज्ञान शिक्षक को निम्नलिखित कार्यों में मदद करता है:
वह बच्चों की असफलता के लिए केवल बच्चे को दोषी नहीं ठहराता।
वह कक्षा में तुलना (Comparison) करने से बचता है। (कभी भी एक बच्चे की तुलना दूसरे से नहीं करनी चाहिए)।
वह समझता है कि "धीमी गति से सीखने वाला बच्चा" भी सीख सकता है, बस उसे समय और सही विधि की जरूरत है।
वह रूढ़िवादी धारणाओं (जैसे जाति या लिंग आधारित भेदभाव) से मुक्त रहकर शिक्षण करता है।
अंततः, शिक्षा का उद्देश्य सभी को एक जैसा बनाना नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति को उसकी क्षमताओं के अनुसार सर्वोत्तम स्तर तक पहुँचाना है। वैयक्तिक विभिन्नता समस्या नहीं, बल्कि एक संसाधन है जो कक्षा को विविधतापूर्ण और समृद्ध बनाती है।
वैयक्तिक विभिन्नता
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