समाज निर्माण एवं लैंगिक मुद्दे

Sunil Sagare
0

 


लिंग और जेंडर में अंतर (Difference between Sex and Gender)

अक्सर लोग 'लिंग' और 'जेंडर' शब्द का प्रयोग एक ही अर्थ में करते हैं, लेकिन सामाजिक विज्ञान और बाल विकास में इनका अर्थ पूरी तरह अलग है।

  • लिंग (Sex): यह एक जैविक संरचना (Biological Construct) है। यह जन्मजात होता है। स्त्री और पुरुष की शारीरिक बनावट, क्रोमोसोम और हार्मोनल अंतर को 'लिंग' कहा जाता है। इसे बदला नहीं जा सकता (सामान्य परिस्थितियों में)।

  • जेंडर (Gender): यह एक सामाजिक संरचना (Social Construct) है। यह समाज द्वारा बनाया गया है। समाज तय करता है कि एक 'पुरुष' को कैसे व्यवहार करना चाहिए और एक 'महिला' को कैसे व्यवहार करना चाहिए। यह समय और संस्कृति के साथ बदल सकता है।

उदाहरण:

  • "महिलाएं बच्चों को जन्म दे सकती हैं" - यह Sex (जैविक) है।

  • "महिलाएं ही बच्चों का पालन-पोषण करेंगी और खाना बनाएंगी" - यह Gender (सामाजिक) है।

लैंगिक भूमिकाएँ (Gender Roles)

लैंगिक भूमिकाएँ वे व्यवहार, दायित्व और गतिविधियाँ हैं जिन्हें एक समाज एक विशिष्ट लिंग (लड़के या लड़की) के लिए उपयुक्त मानता है।

  • ये भूमिकाएँ जन्मजात नहीं होतीं, बल्कि अधिग्रहित (Acquired) होती हैं। बच्चा इन्हें अपने परिवार, मीडिया और समाज को देखकर सीखता है।

  • पुरुषों की भूमिका: सामान्यतः समाज पुरुषों से कठोर, तार्किक, कमाने वाला और रक्षा करने वाला होने की अपेक्षा करता है।

  • महिलाओं की भूमिका: समाज महिलाओं से कोमल, भावुक, देखभाल करने वाली और घरेलू कार्य करने वाली होने की अपेक्षा करता है।

लैंगिक रूढ़िवादिता (Gender Stereotypes)

जब हम किसी विशेष लिंग (स्त्री या पुरुष) के बारे में एक स्थिर और सामान्यीकृत धारणा बना लेते हैं, तो उसे लैंगिक रूढ़िवादिता कहते हैं। यह वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं होती, बल्कि सुनी-सुनाई बातों और पुरानी परंपराओं पर आधारित होती है।

प्रमुख उदाहरण:

  • "लड़के रोते नहीं हैं।"

  • "लड़कियां गणित में कमजोर होती हैं।"

  • "लड़कियां स्वभाव से डरपोक होती हैं।"

  • "पुरुषों को घर का काम या खाना बनाना नहीं आता।"

  • "लड़कों को गुड़ियों से नहीं खेलना चाहिए।"

ये धारणाएँ बच्चों के विकास को सीमित करती हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक लड़की पायलट बनना चाहती है, लेकिन उसे बचपन से कहा जाए कि यह 'लड़कों का काम' है, तो उसका आत्मविश्वास कम हो जाएगा।

लैंगिक पूर्वाग्रह (Gender Bias)

लैंगिक पूर्वाग्रह का अर्थ है किसी एक लिंग के प्रति झुकाव या पक्षपात रखना। जब हम किसी व्यक्ति की योग्यता को नजरअंदाज करके केवल उसके लिंग के आधार पर उससे भेदभाव करते हैं, तो यह जेंडर बायस कहलाता है।

उदाहरण:

  • स्कूल में भारी मेज उठाने के लिए केवल लड़कों को बुलाना।

  • कक्षा की सजावट (रंगोली बनाना) के लिए केवल लड़कियों को चुनना।

  • माता-पिता द्वारा बेटे की शिक्षा पर अधिक खर्च करना और बेटी को घर के काम सिखाना।

  • नौकरी में समान योग्यता होने पर भी पुरुष को महिला से बेहतर मानना।

श्रम का लैंगिक विभाजन (Gender Division of Labor)

यह कार्य के बँटवारे का वह तरीका है जिसमें यह मान लिया जाता है कि कुछ काम केवल महिलाओं के लिए हैं और कुछ केवल पुरुषों के लिए।

  • निजी क्षेत्र (घर): भोजन बनाना, सफाई, बच्चों की देखभाल - यह महिलाओं का क्षेत्र माना जाता है।

  • सार्वजनिक क्षेत्र (बाहर): नौकरी करना, राजनीति, पैसा कमाना - यह पुरुषों का क्षेत्र माना गया है।

वास्तविकता: यह विभाजन जैविक नहीं है। जब वही 'खाना बनाने' का काम किसी होटल में पैसे के लिए किया जाता है (Chef), तो वहां पुरुष खुशी-खुशी काम करते हैं। इसका अर्थ है कि समस्या 'काम' में नहीं, बल्कि उसे करने के पीछे की 'मानसिकता' में है।

समाजीकरण में जेंडर की भूमिका (Gender in Socialization)

बच्चा जन्म लेते ही जेंडर नहीं जानता। समाजीकरण की प्रक्रिया (Socialization Process) उसे सिखाती है कि उसे लड़का या लड़की के रूप में कैसे व्यवहार करना है।

1. परिवार:

  • खिलौनों का चयन: लड़कों को कार और बंदूकें दी जाती हैं, लड़कियों को गुड़िया और किचन सेट।

  • कपड़ों का रंग: लड़कियों के लिए गुलाबी (Pink) और लड़कों के लिए नीला (Blue)।

2. मीडिया:

  • विज्ञापनों में महिलाओं को अक्सर वाशिंग पाउडर या साबुन का प्रचार करते दिखाया जाता है, जबकि पुरुषों को कार या बाइक का।

  • फिल्मों में 'हीरो' हमेशा बचाता है और 'हीरोइन' को बचाया जाता है।

3. विद्यालय:

  • शिक्षकों का व्यवहार और पाठ्यपुस्तकें भी कई बार अनजाने में रूढ़ियों को बढ़ावा देती हैं।

विद्यालय और लैंगिक मुद्दे (School and Gender Issues)

विद्यालय एक लघु समाज है। यहाँ जेंडर के मुद्दे कई रूपों में दिखाई देते हैं:

पाठ्यचर्या और पाठ्यपुस्तकें:

  • अक्सर किताबों में पुलिस, डॉक्टर, या इंजीनियर के चित्र में पुरुषों को दिखाया जाता है।

  • नर्स या शिक्षिका के रूप में महिलाओं को दिखाया जाता है।

  • इसे प्रच्छन्न पाठ्यचर्या (Hidden Curriculum) कहते हैं, जहाँ बिना बोले बच्चों के दिमाग में यह बात डाली जाती है कि कौन सा पेशा किसके लिए है।

शिक्षकों का व्यवहार:

  • कई शोध बताते हैं कि शिक्षक लड़कों से अधिक प्रश्न पूछते हैं और उन्हें अधिक अवसर देते हैं।

  • लड़कियों को अक्सर 'शांत' और 'आज्ञाकारी' रहने के लिए सराहा जाता है, जबकि लड़कों के 'शरारती' व्यवहार को सामान्य माना जाता है।

लैंगिक भेदभाव उत्पन्न करने वाले कारक

1. सामाजिक और धार्मिक कारक: कुछ पुरानी मान्यताओं के अनुसार लड़कियों को घर की चारदीवारी में रहना चाहिए। यह सोच उनकी शिक्षा और स्वतंत्रता को बाधित करती है।

2. आर्थिक कारक: गरीब परिवारों में सीमित संसाधनों के कारण बेटों को 'बुढ़ापे का सहारा' और 'आर्थिक संपत्ति' माना जाता है, जबकि बेटियों को 'पराया धन' या 'दायित्व' समझा जाता है।

3. मनोवैज्ञानिक कारक: कई बार लड़कियों के मन में भी यह हीन भावना आ जाती है कि वे लड़कों से कमतर हैं क्योंकि उन्होंने बचपन से यही देखा और सुना है।

शिक्षक की भूमिका: जेंडर संवेदनशीलता (Role of Teacher)

एक शिक्षक के रूप में आपको जेंडर न्यूट्रल (लैंगिक रूप से तटस्थ) वातावरण बनाना चाहिए। CTET में इससे संबंधित व्यावहारिक प्रश्न पूछे जाते हैं।

शिक्षक को क्या करना चाहिए?

  • रूढ़ियों को चुनौती देना: ऐसी कहानियों और उदाहरणों का प्रयोग करें जो परंपरा को तोड़ते हों। जैसे- एक पिता जो घर पर खाना बनाता है और एक माता जो पायलट है या भारी मशीन चलाती है।

  • समान कार्य: सफाई, फर्नीचर व्यवस्थित करना, और रजिस्टर सँभालना जैसे कार्य लड़के और लड़कियों दोनों को समान रूप से दें।

  • भाषा का प्रयोग: "लड़कों की तरह मत रोओ" या "लड़कियों की तरह शर्माओ मत" जैसे वाक्यों का प्रयोग बिल्कुल न करें। इसके बजाय कहें, "रोना एक सामान्य मानवीय भावना है।"

  • मिश्रित समूह: कक्षा में लड़के और लड़कियों को अलग-अलग बैठाने के बजाय उनके मिश्रित समूह (Mixed Groups) बनाएँ ताकि वे एक-दूसरे का सम्मान करना सीखें।

  • करियर काउंसलिंग: लड़कियों को विज्ञान, गणित और इंजीनियरिंग (STEM) लेने के लिए प्रोत्साहित करें और लड़कों को कला या होम साइंस लेने पर हतोत्साहित न करें।

लैंगिक समानता बनाम लैंगिक समता (Gender Equality vs Equity)

  • लैंगिक समानता (Equality): इसका अर्थ है लड़के और लड़कियों को बिल्कुल एक समान संसाधन और अवसर देना। (जैसे- सभी को एक ही किताब देना)।

  • लैंगिक समता (Equity): इसका अर्थ है जरूरत के अनुसार सहायता देना ताकि वे बराबरी पर आ सकें। (जैसे- जो वर्ग पिछड़ गया है, उसके लिए विशेष छात्रवृत्ति या सुविधा देना)। शिक्षा में 'समता' (Equity) ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह निष्पक्षता (Fairness) पर आधारित है।

महत्वपूर्ण बिंदु (Exam Bullet Points)

  • लिंग एक जैविक सत्ता है, जेंडर एक सामाजिक सत्ता है।

  • पितृसत्तात्मक (Patriarchal) समाज वह है जहाँ पुरुषों के पास अधिक शक्ति और अधिकार होते हैं।

  • 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बाल लिंगानुपात (0-6 वर्ष) में गिरावट आई थी, जो चिंता का विषय है (914 लड़कियां प्रति 1000 लड़के)।

  • 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' योजना का उद्देश्य गिरते लिंगानुपात को सुधारना और लड़कियों को सशक्त बनाना है।

  • कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, कर्णम मल्लेश्वरी जैसे उदाहरण कक्षा में देने चाहिए ताकि लड़कियों का आत्मविश्वास बढ़े।

  • कक्षा में चर्चा (Discussion) के दौरान जेंडर मुद्दों पर आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking) विकसित करनी चाहिए।

निष्कर्ष

समाज निर्माण में जेंडर एक शक्तिशाली कारक है। यदि हम एक प्रगतिशील समाज बनाना चाहते हैं, तो इसकी शुरुआत कक्षा कक्ष से होनी चाहिए। शिक्षकों को अपनी पूर्वाग्रही सोच को त्यागकर बच्चों को उनकी क्षमता के आधार पर आंकना चाहिए, न कि उनके लिंग के आधार पर। जब लड़के और लड़कियाँ दोनों को समान सम्मान और अवसर मिलेंगे, तभी समाज का वास्तविक विकास संभव होगा।



समाज निर्माण एवं लैंगिक मुद्दे

Mock Test: 20 Questions | 20 Minutes

Time Left: 20:00

टिप्पणी पोस्ट करा

0 टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top