व्याकरण क्या है?
व्याकरण किसी भी भाषा का वह शास्त्र है जो उस भाषा को शुद्ध रूप से बोलने, लिखने और समझने के नियम प्रदान करता है। इसे 'भाषा का मेरुदंड' (Backbone) भी कहा जाता है।
परिभाषा: व्याकरण वह साधन है जिसके द्वारा हम भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
उद्देश्य: भाषा में स्पष्टता, शुद्धता और मानकीकरण लाना।
प्रकृति: व्याकरण साध्य नहीं है, बल्कि साधन है। अर्थात, व्याकरण सीखना अंतिम लक्ष्य नहीं है, बल्कि भाषा को प्रभावी ढंग से प्रयोग करना अंतिम लक्ष्य है।
भाषा अधिगम में व्याकरण की आवश्यकता: विभिन्न मत
क्या भाषा सीखने के लिए व्याकरण जानना अनिवार्य है? इस पर शिक्षाविदों के अलग-अलग मत हैं:
1. पारंपरिक मत (Traditional View):
इस मत के अनुसार, व्याकरण भाषा सीखने का आधार है।
शब्दावली और नियमों को रटे बिना भाषा नहीं सीखी जा सकती।
यह दृष्टिकोण सटीकता (Accuracy) पर अधिक जोर देता है।
2. आधुनिक/संप्रेषणात्मक मत (Communicative View):
भाषा का मुख्य उद्देश्य संप्रेषण (Communication) है।
व्याकरण नियमों को रटने के बजाय, संदर्भ में भाषा का प्रयोग करना अधिक महत्वपूर्ण है।
बच्चे अपनी मातृभाषा बिना व्याकरण की किताब पढ़े सीखते हैं, जो यह सिद्ध करता है कि स्वाभाविक वातावरण में व्याकरण स्वतः आत्मसात हो जाता है।
यह दृष्टिकोण प्रवाह (Fluency) पर अधिक जोर देता है।
व्याकरण के प्रकार (Types of Grammar)
CTET के दृष्टिकोण से व्याकरण को दो मुख्य श्रेणियों में समझा जा सकता है:
1. औपचारिक व्याकरण (Formal Grammar):
इसमें नियमों, परिभाषाओं और सूत्रों को रटने पर जोर दिया जाता है।
यह विधि अक्सर नीरस होती है और रटंत प्रणाली को बढ़ावा देती है।
उदाहरण: संज्ञा की परिभाषा याद करना।
2. प्रकार्यात्मक व्याकरण (Functional Grammar):
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इसे 'व्यावहारिक व्याकरण' भी कहते हैं।
इसमें नियमों को रटने के बजाय उनके प्रयोग (Usage) पर बल दिया जाता है।
यह संदर्भ के अनुसार भाषा के सही उपयोग को सिखाता है।
CTET और NCF 2005 इसी प्रकार के व्याकरण शिक्षण की वकालत करते हैं।
व्याकरण शिक्षण की प्रमुख विधियाँ (Teaching Methods)
शिक्षण विधियों से परीक्षा में सबसे अधिक प्रश्न पूछे जाते हैं। मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं:
1. निगमन विधि (Deductive Method)
यह व्याकरण पढ़ाने की सबसे पुरानी और पारंपरिक विधि है।
प्रक्रिया: नियम $\rightarrow$ उदाहरण (Rule to Example)।
शिक्षक पहले व्याकरण का नियम या परिभाषा बताते हैं, फिर उसके उदाहरण देते हैं।
चरण:
नियम प्रस्तुतीकरण।
उदाहरण देना।
अभ्यास करना।
गुण: यह विधि उच्च कक्षाओं (Secondary Stage) के लिए उपयुक्त है जहाँ पाठ्यक्रम विस्तृत होता है। इससे समय की बचत होती है।
दोष: यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है क्योंकि यह रटने पर जोर देती है। छोटे बच्चों के लिए यह बोझिल हो सकती है।
उदाहरण: शिक्षक पहले बताते हैं कि "किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान के नाम को संज्ञा कहते हैं" और फिर 'राम', 'दिल्ली' आदि उदाहरण देते हैं।
2. आगमन विधि (Inductive Method)
यह विधि बाल-केंद्रित है और प्राथमिक स्तर के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
प्रक्रिया: उदाहरण $\rightarrow$ नियम (Example to Rule)।
इसमें पहले छात्रों के सामने कई उदाहरण रखे जाते हैं, छात्र उनका विश्लेषण करते हैं और अंत में स्वयं एक निष्कर्ष (नियम) तक पहुँचते हैं।
सूत्र:
विशिष्ट से सामान्य की ओर।
ज्ञात से अज्ञात की ओर।
मूर्त से अमूर्त की ओर।
गुण: इससे प्राप्त ज्ञान स्थायी होता है। यह तार्किक क्षमता और खोज करने की प्रवृत्ति को बढ़ाता है। कक्षा रूचिकर बनी रहती है।
दोष: इसमें समय अधिक लगता है और यह उच्च कक्षाओं के विस्तृत पाठ्यक्रम के लिए हमेशा व्यावहारिक नहीं होती।
उदाहरण: शिक्षक बोर्ड पर 'लड़का', 'कुर्सी', 'जयपुर' लिखते हैं। फिर बच्चों से पूछते हैं कि ये क्या हैं? चर्चा के बाद निष्कर्ष निकलता है कि ये सब 'नाम' हैं, और इन्हीं नाम वाले शब्दों को संज्ञा कहते हैं।
3. आगमन-निगमन विधि (Inductive-Deductive Method)
यह सबसे व्यावहारिक विधि है।
इसमें पहले आगमन विधि द्वारा नियम निकलवाए जाते हैं और फिर निगमन विधि द्वारा उन नियमों का अभ्यास कराया जाता है।
4. व्याकरण-अनुवाद विधि (Grammar-Translation Method)
यह दूसरी भाषा (Second Language) सिखाने की सबसे पुरानी विधि है।
इसमें लक्ष्य भाषा (Target Language) के हर शब्द और वाक्य का मातृभाषा में अनुवाद किया जाता है।
इसमें व्याकरण के नियमों को रटने पर बहुत जोर दिया जाता है।
कमी: इसमें बच्चे पढ़ना-लिखना तो सीख जाते हैं, लेकिन बोलने (Speaking) और सुनने (Listening) के कौशल विकसित नहीं हो पाते।
संदर्भ में व्याकरण (Grammar in Context)
आधुनिक शिक्षा शास्त्र 'संदर्भ में व्याकरण' पर सबसे अधिक जोर देता है। यह एक अलग विधि न होकर पढ़ाने का एक तरीका है।
अवधारणा:
व्याकरण को पाठ्यपुस्तक के पाठों (कहानी, कविता) से अलग नहीं पढ़ाया जाना चाहिए।
जब छात्र कोई कहानी पढ़ रहे हों, तो उसी दौरान आने वाले कठिन शब्दों या वाक्य संरचनाओं को संदर्भ के साथ समझाना चाहिए।
लाभ:
छात्र समझते हैं कि नियम वास्तविक जीवन में कैसे काम करते हैं।
व्याकरण बोझ नहीं लगता।
अर्थ समझने की क्षमता बढ़ती है।
उदाहरण:
यदि शिक्षक 'भूतकाल' (Past Tense) पढ़ाना चाहते हैं, तो वे अलग से नियम लिखाने के बजाय, बच्चों को एक कहानी सुनाते हैं जो भूतकाल में है। फिर बच्चों का ध्यान उस कहानी में प्रयुक्त क्रिया शब्दों (जैसे - गया था, खाया था, देखा था) की ओर आकर्षित करते हैं।
व्याकरण शिक्षण की आधुनिक विधियाँ
1. अनौपचारिक विधि (Informal Method):
इसमें व्याकरण की कोई विशेष कक्षा नहीं होती।
शिक्षक अच्छी भाषा का प्रयोग करते हैं और बच्चे अनुकरण (Imitation) द्वारा सही भाषा सीख जाते हैं।
यह विधि प्रारंभिक स्तर पर बहुत उपयोगी है।
2. समवाय विधि (Incidental/Correlation Method):
व्याकरण को अलग से नहीं, बल्कि गद्य, पद्य या रचना पढ़ाते समय प्रसंगानुसार पढ़ाया जाता है।
यह 'संदर्भ में व्याकरण' के समान ही है।
घोषणात्मक ज्ञान बनाम प्रक्रियात्मक ज्ञान (Declarative vs. Procedural Knowledge)
CTET में हाल ही में इन शब्दों का प्रयोग बढ़ा है:
1. घोषणात्मक ज्ञान (Declarative Knowledge):
यह 'व्याकरण के बारे में ज्ञान' है।
अर्थात, नियमों को जानना और उन्हें वर्णित करने की क्षमता।
उदाहरण: यह जानना कि 'संज्ञा किसे कहते हैं' या 'सकर्मक क्रिया का नियम क्या है'।
यह ज्ञान अक्सर रटा हुआ या सैद्धांतिक होता है।
2. प्रक्रियात्मक ज्ञान (Procedural Knowledge):
यह 'व्याकरण का प्रयोग करने का ज्ञान' है।
अर्थात, संचार के दौरान व्याकरण के नियमों को लागू करना, भले ही आप नियमों की परिभाषा न जानते हों।
उदाहरण: बातचीत करते समय सही काल (Tense) का प्रयोग करना, बिना यह सोचे कि नियम क्या है।
NCF 2005 प्रक्रियात्मक ज्ञान को बढ़ावा देता है।
व्याकरण शिक्षण में त्रुटियाँ (Errors in Grammar Learning)
अक्सर शिक्षक बच्चों की व्याकरणिक गलतियों को नकारात्मक मानते हैं, लेकिन मनोविज्ञान इसे अलग तरह से देखता है:
त्रुटियाँ सीखने का हिस्सा हैं: त्रुटियाँ यह बताती हैं कि बच्चा सीख रहा है और नियमों का सामान्यीकरण (Generalization) कर रहा है।
सुधार का तरीका: हर गलती पर तुरंत टोकना नहीं चाहिए। इससे बच्चे का आत्मविश्वास कम होता है।
उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching): त्रुटियों का विश्लेषण करके उपचारात्मक शिक्षण दिया जाना चाहिए, न कि दंड।
एक सफल व्याकरण शिक्षक के गुण
एक शिक्षक के रूप में आपको निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
नियमों को रटाने से बचें।
अधिक से अधिक उदाहरणों का प्रयोग करें जो बच्चों के दैनिक जीवन से जुड़े हों।
आगमनात्मक विधि (Inductive Method) को प्राथमिकता दें।
व्याकरण को मनोरंजक गतिविधियों (खेल, क्विज़) के माध्यम से सिखाएं।
बच्चों को निडर होकर भाषा प्रयोग करने के अवसर दें, चाहे वे गलतियाँ ही क्यों न करें।
परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु (Key Points for Revision)
आगमनात्मक विधि: उदाहरण से नियम (Best for Primary).
निगमनात्मक विधि: नियम से उदाहरण (Good for Higher Education).
प्रकार्यात्मक व्याकरण: नियमों के प्रयोग और संदर्भ पर जोर (Most Recommended).
प्रक्रियात्मक ज्ञान: भाषा का व्यावहारिक प्रयोग।
व्याकरण-अनुवाद विधि: मातृभाषा में अनुवाद और नियमों को रटने पर जोर (Traditional).
व्याकरण शिक्षण का उद्देश्य केवल शुद्धता नहीं, बल्कि प्रभावी संप्रेषण है।
भाषा अधिगम और व्याकरण
Mock Test: 20 Questions | 20 Minutes
