बाल मनोविज्ञान : पियाजे, कोह्लबर्ग एवं वाइगोत्स्की के सिद्धान्त

Sunil Sagare
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1. जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त

जीन पियाजे स्विट्जरलैंड के मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने अपने स्वयं के बच्चों पर प्रयोग कर यह पता लगाया कि बालकों में बुद्धि का विकास कैसे होता है।

मुख्य अवधारणाएँ:

  • संज्ञानात्मक विकास: इसका अर्थ बच्चों के सीखने और सूचनाएँ एकत्रित करने के तरीके से है। इसमें अवधान, प्रत्यक्षीकरण, भाषा, चिन्तन, स्मरण शक्ति और तर्क शामिल हैं।

  • अनुकूलन: वातावरण के अनुसार स्वयं को ढालना अनुकूलन कहलाता है।

  • आत्मसातीकरण: पूर्व ज्ञान के साथ नवीन ज्ञान को जोड़ने की प्रक्रिया। जैसे: एक बच्चे ने पहले सफेद कुत्ता देखा, अब सफेद बिल्ली को देखकर उसे कुत्ता ही कहना।

  • समायोजन: जब बालक अपने पुराने स्कीमा या ज्ञान में परिवर्तन करना शुरू कर देता है ताकि वह नए वातावरण में सामंजस्य बैठा सके।

  • स्कीमा: अनुभव से सही अर्थ निकालने के व्यवस्थित तरीके या विशिष्ट मनोवैज्ञानिक संरचनाएँ।

  • साम्यधारणा/सन्तुलीकरण: यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो मानसिक संरचनाओं को परिष्कृत और परिवर्तित करती है, जिससे आत्मसातीकरण और समायोजन के बीच संतुलन बनता है।

संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएँ:

1. इन्द्रियजनित गामक अवस्था (जन्म से 2 वर्ष):

  • बालक अपनी इन्द्रियों (आँख, कान, नाक) के माध्यम से सीखता है।

  • इस अवस्था में 'वस्तु स्थायित्व' का गुण विकसित होने लगता है (वस्तु के ओझल होने पर भी उसका अस्तित्व बना रहता है)।

  • शिशु भूख लगने पर रोकर अपनी अभिव्यक्ति करता है।

  • मानसिक क्रियाएँ अनुकरण और स्मृति पर आधारित होती हैं।

2. पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (2 से 7 वर्ष):

  • बालक परिवेश की वस्तुओं को पहचानने और उनमें विभेद करने लगता है।

  • भाषा का विकास प्रारंभ हो जाता है।

  • बालक नई सूचनाओं और अनुभवों का संग्रह करता है।

  • प्रतीकात्मक और सांकेतिक खेलों में भाग लेना शुरू करता है।

3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (7 से 11 वर्ष):

  • बालक वस्तुओं को पहचानने, उनका विभेदीकरण और वर्गीकरण करने की क्षमता विकसित कर लेता है।

  • चिन्तन अधिक क्रमबद्ध और तर्कसंगत (मूर्त वस्तुओं के प्रति) होने लगता है।

  • बालक लम्बाई, भार, अंक आदि प्रत्ययों पर चिन्तन करने लगता है।

  • उत्क्रमणशीलता (पलटावी गुण) का विकास होता है, जैसे मिट्टी के टूटे हुए चक्र को पुनः जोड़ना।

4. औपचारिक/अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (11 वर्ष से आगे):

  • अमूर्त चिन्तन इस अवस्था की सबसे प्रमुख विशेषता है।

  • समस्या समाधान और निर्णय लेने की क्षमता का पूर्ण विकास।

  • परिकल्पित निगमनात्मक तर्क और प्रतिज्ञाप्ति चिन्तन करने में सक्षम।


2. लॉरेन्स कोह्लबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त

कोह्लबर्ग ने पियाजे के सिद्धान्त को आधार बनाकर नैतिक विकास की अवस्थाएँ दीं।

नैतिक विकास के मुख्य स्तर:

1. पूर्व परम्परागत स्तर (4 से 10 वर्ष):

  • बालक की नैतिकता बाहरी पुरस्कार या दण्ड पर आधारित होती है।

  • दण्ड तथा आज्ञापालन: बालक दण्ड से बचने के लिए नियमों का पालन करता है।

  • आत्म-अभिरुचि (जैसे को तैसा): बालक अपनी रुचि को प्राथमिकता देता है और लाभ-हानि के आधार पर निर्णय लेता है।

2. परम्परागत नैतिक स्तर (10 से 13 वर्ष):

  • बालक समाज के मानकों को अपने व्यवहार में समाहित करता है।

  • अच्छा लड़का/अच्छी लड़की: दूसरों की नज़र में अच्छा बनने और प्रशंसा पाने की इच्छा।

  • अधिकार संरक्षण (नियम और व्यवस्था): सामाजिक नियमों और कानून का पालन करना ताकि व्यवस्था बनी रहे।

3. उत्तर परम्परागत स्तर (13 वर्ष से ऊपर):

  • नैतिकता आत्म-अंगीकृत मूल्यों पर आधारित होती है।

  • सामाजिक अनुबन्ध: व्यक्ति मानता है कि नियम समाज के हित के लिए हैं, यदि वे हित नहीं कर रहे तो बदले जा सकते हैं (जैसे जान बचाने के लिए दवा की चोरी)।

  • सार्वभौमिक नैतिक सिद्धान्त: अन्तःकरण की आवाज़ और सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए नैतिकता।


3. लेव वाइगोत्स्की का सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धान्त

वाइगोत्स्की रूस के मनोवैज्ञानिक थे। उनका मानना था कि बालक के विकास में समाज, संस्कृति और भाषा की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है।

मुख्य अवधारणाएँ:

  • समीपस्थ विकास का क्षेत्र (ZPD): बालक के स्वतंत्र प्रदर्शन के स्तर और किसी अनुभवी व्यक्ति की सहायता से प्राप्त किए जा सकने वाले स्तर के बीच का अंतर।

  • Scaffolding (पाड़/ढाँचा/सहारा): किसी समस्या के समाधान के दौरान वयस्कों या साथियों द्वारा दिया गया "अस्थायी सहयोग"।

  • भाषा का महत्व: वाइगोत्स्की के अनुसार भाषा संज्ञानात्मक विकास का एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

  • निजी वाचन (Private Speech): जब बच्चा अपनी क्रियाओं को निर्देशित करने के लिए खुद से बोल-बोल कर बातें करता है।

  • सहयोगात्मक समस्या समाधान: बच्चे अपने साथियों की सहायता और शिक्षक के निर्देशन में जटिल कार्य सीखते हैं।


4. सिद्धान्तों का शैक्षिक महत्त्व

  • शिक्षक की भूमिका: शिक्षकों को बच्चों के मानसिक विकास के स्तर के अनुसार योजना बनानी चाहिए।

  • तार्किक क्षमता: कक्षा में वाद-विवाद और चर्चाओं के माध्यम से बच्चों की तर्क शक्ति बढ़ानी चाहिए।

  • समूह अधिगम: वाइगोत्स्की के अनुसार बच्चों को छोटे-छोटे समूहों में रखकर विचार-विनिमय के अवसर देने चाहिए।

  • प्रयोगात्मक शिक्षा: पियाजे के अनुसार बच्चों को स्वयं खोज करने और गलतियों से सीखने के पर्याप्त अवसर देने चाहिए।


5. प्रमुख तुलनात्मक बिंदु

विशेषतापियाजेवाइगोत्स्कीकोह्लबर्ग
विकास का आधारजैविक परिपक्वता और चरणसामाजिक अंतःक्रिया और संस्कृतिनैतिक तर्कणा और संज्ञानात्मक चरण
भाषा की भूमिकाचिन्तन भाषा को निर्धारित करता हैभाषा चिन्तन को निर्देशित करती हैविशेष उल्लेख नहीं
अधिगम की प्रकृतिबच्चा एक 'नन्हा वैज्ञानिक' हैबच्चा समाज के सहयोग से सीखता हैबच्चा सामाजिक मानदंडों से सीखता है

6. महत्वपूर्ण परीक्षा तथ्य

  • पियाजे: विकास एक सतत प्रक्रिया है लेकिन संज्ञानात्मक चरणों में होता है।

  • वाइगोत्स्की: सांस्कृतिक उपकरण (जैसे मानचित्र, भाषा, कैलकुलेटर) विकास में सहायक होते हैं।

  • कोह्लबर्ग: पुरुषों और महिलाओं की नैतिक तार्किकता में सांस्कृतिक विभिन्नताओं को पर्याप्त महत्व न देने के कारण इनकी आलोचना की गई।

 



पियाजे, कोह्लबर्ग एवं वाइगोत्स्की के सिद्धान्त

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