1. अधिगम का अर्थ एवं परिभाषा
सक्रिय प्रतिक्रिया: अधिगम अथवा सीखना किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया को दर्शाता है।
मानसिक प्रक्रिया: यह एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जो जीवनपर्यन्त चलती रहती है और जिसके माध्यम से हम ज्ञान अर्जित करते हैं।
व्यवहार में परिवर्तन: मनोवैज्ञानिक प्रेसी के अनुसार, अधिगम एक अनुभव है जिसके द्वारा कार्य में परिवर्तन या समायोजन होता है और व्यवहार की नवीन विधि प्राप्त होती है।
सर्वांगीण विकास: अधिगम व्यक्ति के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है और जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है।
व्यावहारिक प्रयोग: केवल रटकर याद करने को अधिगम नहीं कहा जा सकता। अधिगम तभी माना जाता है जब छात्र ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग करने में सक्षम हो जाए।
2. अधिगम के प्रकार
क्रियात्मक अधिगम
इसमें सीखने के लिए क्रियाओं के स्वरूप और उनकी गति पर ध्यान दिया जाता है।
बाल्यावस्था में गतिवाही कौशलों का अर्जन इसी के अंतर्गत आता है।
उदाहरण: किसी वस्तु तक पहुँचना, उसे पहचानना, बिना सहारे के खड़े होना या चलना।
शाब्दिक या वाचिक अधिगम
इसमें संकेतों, चित्रों, शब्दों और अंकों के माध्यम से सीखा जाता है।
इसमें सार्थक और निरर्थक दोनों प्रकार की सामग्रियों का प्रयोग होता है।
उदाहरण: वैज्ञानिक आविष्कार, यन्त्रों का निर्माण और जटिल समस्याओं का समाधान करना।
विचारात्मक अधिगम
इसमें व्यक्ति समाज के दैनिक अनुभवों को देखकर, सुनकर और उन पर विचार करके सीखता है।
इसमें शारीरिक क्षमता की तुलना में मानसिक या बौद्धिक क्षमताओं का अधिक प्रयोग होता है।
3. भाषा अधिगम और भाषा अर्जन: मुख्य अंतर
भाषा अर्जन
प्रक्रिया: यह एक सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया है।
माध्यम: यह मुख्य रूप से अनुकरण द्वारा होता है। बालक अपने वातावरण में लोगों को बोलते हुए सुनकर भाषा ग्रहण करता है।
परिवेश: इसके लिए किसी औपचारिक शिक्षण की आवश्यकता नहीं होती; यह घरेलू और सामाजिक वातावरण में स्वतः होता है।
मातृभाषा: बालक अपनी प्रथम भाषा या मातृभाषा का अर्जन ही करता है।
भाषा अधिगम
प्रक्रिया: यह एक प्रयासपूर्ण और चेतन प्रक्रिया है।
नियम: इसमें भाषा के नियमों, व्याकरण और शब्दावली को औपचारिक रूप से सीखा जाता है।
संस्थान: यह विद्यालय या किसी शिक्षण संस्थान में होता है।
द्वितीय भाषा: जब कोई बालक दूसरी भाषा सीखता है, तो वह भाषा अधिगम कहलाता है।
4. विभिन्न विद्वानों के विचार
नोआम चॉम्स्की
जन्मजात क्षमता: चॉम्स्की के अनुसार, बच्चों में भाषा सीखने की क्षमता जन्मजात होती है।
वैज्ञानिक खोज: भाषा सीखने के क्रम में बालक साथ-साथ वैज्ञानिक खोज भी करता रहता है।
भाषा अर्जन उपकरण: उन्होंने माना कि मानव मस्तिष्क में एक जन्मजात भाषा अर्जन उपकरण होता है जो उसे व्याकरणिक पैटर्न खोजने में मदद करता है।
जीन पियाजे
संज्ञानात्मक तंत्र: पियाजे के अनुसार, भाषा अन्य संज्ञानात्मक तंत्रों की भांति परिवेश के साथ अंतःक्रिया के माध्यम से विकसित होती है।
अवस्थाएँ: उन्होंने विकास की चार अवस्थाएँ बताई हैं: संवेदी गतिक, पूर्व-प्रक्रियात्मक, मूर्त संक्रियात्मक और औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था।
आत्मसातीकरण: बालक आत्मसातीकरण और सामंजस्य के माध्यम से भाषा की रूपरेखा बनाता है।
लेव वाइगोत्स्की
सामाजिक संपर्क: वाइगोत्स्की का मानना है कि बच्चे की भाषा समाज के साथ संपर्क का परिणाम है।
बोली के प्रकार: बच्चा दो प्रकार की बोली बोलता है - आत्मकेन्द्रित (स्वयं से संवाद) और सामाजिक (दुनिया से संवाद)।
अन्तः वाक: उन्होंने अन्तः वाक या निजी संवाद की संकल्पना दी, जहाँ बच्चा अपने कार्यों को दिशा देने के लिए स्वयं से बात करता है।
5. भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक
सामाजिक परिवेश: समाज में जैसी भाषा का प्रयोग होता है, बालक वैसी ही भाषा सीखता है। अशुद्ध परिवेश भाषा को अशुद्ध बना सकता है।
इच्छा शक्ति: द्वितीय भाषा सीखने के लिए बालक की अपनी रुचि और दृढ़ इच्छा शक्ति बहुत महत्वपूर्ण होती है।
दैनिक जीवन के अनुभव: यदि भाषा शिक्षण को बालक के दैनिक अनुभवों से जोड़ दिया जाए, तो अधिगम की प्रक्रिया सरल और तेज हो जाती है।
आवश्यकताओं की पूर्ति: बालक अपनी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भाषा जल्दी सीखता है।
6. भाषा विकास की अवस्थाएँ
प्रारम्भिक अवस्था
सहज ध्वनियाँ: जन्म के समय रोना और चिल्लाना स्वाभाविक ध्वनियाँ हैं।
बड़बड़ाना: इसके माध्यम से बालक स्वर और व्यंजन ध्वनियों का अभ्यास करता है।
हाव-भाव: बालक धीरे-धीरे शारीरिक संकेतों और हाव-भावों को समझना शुरू करता है।
वास्तविक अवस्था
मौखिक अभिव्यक्ति: एक वर्ष की आयु के आसपास बालक शब्द बोलना और समझना शुरू करता है।
शब्द भण्डार: विद्यालय प्रवेश के साथ बालक के शब्दकोश में तेजी से वृद्धि होती है।
लिखित भाषा: औपचारिक शिक्षा के साथ पढ़ने और लिखने के कौशलों का विकास होता है।
7. शब्द भण्डार का विकास तालिका
| आयु | शब्द संख्या |
| जन्म से 8 माह | 0 |
| 9 माह से 12 माह | 3 से 4 शब्द |
| 1.5 वर्ष (डेढ़ वर्ष) | 10 से 12 शब्द |
| 2 वर्ष | 272 शब्द |
| 5 वर्ष | 2100 शब्द |
| 11 वर्ष | 50,000 शब्द |
| 14 वर्ष | 80,000 शब्द |
| 16 वर्ष से आगे | 1,00,000 से अधिक |
8. महत्वपूर्ण शिक्षण रणनीतियाँ
अंतःक्रिया: कक्षा में बच्चों को परस्पर संवाद करने और अंतःक्रिया करने के भरपूर अवसर मिलने चाहिए।
समृद्ध परिवेश: भाषा सीखने के लिए एक समृद्ध भाषिक परिवेश की उपलब्धता सबसे अनिवार्य शर्त है।
बारीकी समझना: उच्च प्राथमिक स्तर पर भाषा शिक्षण का उद्देश्य भाषा की बारीकी और सौंदर्यबोध को सही रूप में समझना है।
सहारा देना: शिक्षार्थी उन स्तरों को दूसरों की सहायता से प्राप्त कर सकते हैं जिन्हें वे अकेले नहीं कर पाते (इसे 'पाड़' या स्कैफोल्डिंग कहा जाता है)।
हिन्दी : अधिगम एवं अर्जन
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