1. बाल-केन्द्रित शिक्षा की अवधारणा
प्राचीन शिक्षा पद्धति में शिक्षा का केंद्र 'शिक्षक' या 'पाठ्यपुस्तक' हुआ करती थी। छात्र केवल मूक श्रोता होते थे और उनका काम जानकारियों को रटना होता था। आधुनिक मनोविज्ञान ने इस विचारधारा को पूरी तरह बदल दिया है।
बाल-केन्द्रित शिक्षा का अर्थ बाल-केन्द्रित शिक्षा वह प्रणाली है जिसमें शिक्षा का समस्त आयोजन बालक को केंद्र में रखकर किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य बालक की रुचियों, प्रवृत्तियों और क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए उसका सर्वांगीण विकास करना है।
इस पद्धति में बालक 'गौण' नहीं बल्कि 'मुख्य' होता है।
शिक्षण का कार्य बालक की स्वाभाविक गति और स्तर के अनुसार तय किया जाता है।
यह मानती है कि प्रत्येक बालक विशिष्ट है और उसकी सीखने की शैली अलग है।
बाल-केन्द्रित शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ
बालक की प्रधानता: शिक्षा का उद्देश्य पाठ्यक्रम पूरा करना नहीं, बल्कि बालक की जन्मजात शक्तियों का विकास करना है।
सर्वांगीण विकास: केवल मानसिक विकास ही नहीं, बल्कि शारीरिक, सामाजिक, संवेगात्मक और नैतिक विकास पर भी जोर दिया जाता है।
क्रियाशीलता का सिद्धांत: इसमें बालक निष्क्रिय होकर नहीं सुनता, बल्कि वह सक्रिय रहता है। 'करके सीखना' (Learning by Doing) इसका मूल मंत्र है।
व्यक्तिगत विभिन्नता का सम्मान: हर कक्षा में अलग-अलग बुद्धि लब्धि और क्षमता वाले बच्चे होते हैं। शिक्षक को मन्दबुद्धि, सामान्य और प्रतिभाशाली सभी बच्चों की आवश्यकताओं को समझना होता है।
स्वतंत्रता और अनुशासन: इसमें दंडात्मक अनुशासन का कोई स्थान नहीं है। स्व-अनुशासन (Self-discipline) को बढ़ावा दिया जाता है।
2. प्रगतिशील शिक्षा (Progressive Education)
प्रगतिशील शिक्षा एक ऐसा आंदोलन है जो पारंपरिक और रटन-आधारित शिक्षा के विरोध में उभरा। यह अमेरिका के मनोवैज्ञानिक जॉन डीवी के विचारों पर आधारित है।
जॉन डीवी के विचार जॉन डीवी को प्रगतिशील शिक्षा का जनक माना जाता है। उनके अनुसार:
"शिक्षा जीवन की तैयारी नहीं है, बल्कि शिक्षा स्वयं जीवन है।"
विद्यालय समाज का एक लघुरूप होना चाहिए जहाँ बच्चे वास्तविक जीवन की समस्याओं को सुलझाना सीखें।
शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए।
प्रगतिशील शिक्षा के मुख्य तत्त्व
मस्तिष्क और बुद्धि: मनुष्य अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए बुद्धि का प्रयोग करता है। जैसे-जैसे वह चिंतन करता है, उसका मानसिक विकास होता है।
ज्ञान: ज्ञान रटने से नहीं, बल्कि कर्म और अनुभव से प्राप्त होता है।
समस्या समाधान: बच्चों को ऐसी परिस्थितियाँ दी जानी चाहिए जहाँ वे खुद सोचें और समाधान निकालें।
सहयोगात्मक अधिगम: बच्चों को समूहों में काम करने, एक-दूसरे की मदद करने और सामाजिक कौशल सीखने का अवसर मिलना चाहिए।
3. बाल-केन्द्रित और पारंपरिक शिक्षा में अंतर
CTET में अक्सर इन दोनों के बीच तुलनात्मक प्रश्न पूछे जाते हैं। इसे समझना बहुत जरूरी है।
पारंपरिक शिक्षा (शिक्षक-केन्द्रित)
शिक्षक ज्ञान का एकमात्र स्रोत होता है और तानाशाह की भूमिका में होता है।
बच्चे खाली बर्तन माने जाते हैं जिन्हें ज्ञान से भरना है।
अनुशासन सख्त और बाहरी होता है (डंडे का डर)।
मूल्यांकन का आधार केवल लिखित परीक्षा और रटने की क्षमता है।
पाठ्यक्रम स्थिर और सभी के लिए एक जैसा होता है।
बाल-केन्द्रित/प्रगतिशील शिक्षा
शिक्षक एक सुविधादाता (Facilitator) और मार्गदर्शक होता है।
बच्चे ज्ञान के सक्रिय निर्माता होते हैं।
अनुशासन आंतरिक और लोकतांत्रिक होता है।
मूल्यांकन सतत और व्यापक होता है (CCE), जिसमें गतिविधियों और व्यवहार का भी आकलन होता है।
पाठ्यक्रम लचीला और बच्चे की जरूरत के अनुसार होता है।
4. बाल-केन्द्रित शिक्षण की प्रमुख विधियाँ
इस शिक्षा प्रणाली में उन विधियों का प्रयोग किया जाता है जो बच्चे को सक्रिय रखें।
1. प्रोजेक्ट विधि (Project Method)
प्रवर्तक: किलपैट्रिक (जॉन डीवी के शिष्य)।
सिद्धांत: बच्चे किसी उद्देश्यपूर्ण कार्य को सामाजिक वातावरण में पूरा करते हैं।
लाभ: इसमें योजना बनाना, क्रियान्वयन करना और समूह में कार्य करना सीखा जाता है।
2. समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)
इसमें बच्चों के सामने एक वास्तविक समस्या रखी जाती है।
बच्चे वैज्ञानिक ढंग से चरणों का पालन करते हुए (समस्या की पहचान, परिकल्पना, तथ्य संग्रह, निष्कर्ष) समाधान खोजते हैं।
3. अन्वेषण या ह्यूरिस्टिक विधि (Heuristic Method)
प्रवर्तक: आर्मस्ट्रांग।
अर्थ: 'मैं खोजता हूँ'।
इसमें बच्चे को एक शोधकर्ता की स्थिति में रखा जाता है। शिक्षक बहुत कम निर्देश देता है, बच्चे खुद तथ्यों को खोजते हैं।
4. खेल विधि (Play-way Method)
महत्व: फ्रोबेल (किंडरगार्टन के जनक) और मारिया मॉन्टेसरी ने इस पर बहुत जोर दिया।
खेल बच्चों की स्वाभाविक भाषा है। खेल-खेल में जटिल अवधारणाएँ आसानी से सिखाई जा सकती हैं।
5. मॉन्टेसरी विधि
प्रवर्तक: मारिया मॉन्टेसरी।
इसमें 'ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण' पर विशेष बल दिया जाता है। बच्चे विशेष उपकरणों के साथ खेलकर सीखते हैं।
5. शिक्षक की भूमिका: तानाशाह नहीं, सुविधादाता
N C F 2005 (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा) स्पष्ट रूप से कहता है कि शिक्षक की भूमिका एक सुविधादाता (Facilitator) की होनी चाहिए।
वातावरण निर्माता: शिक्षक का काम कक्षा में ऐसा भयमुक्त और उत्साहजनक वातावरण बनाना है जहाँ बच्चे प्रश्न पूछने में हिचकिचाएँ नहीं।
निदानकर्ता: शिक्षक को यह पहचानना होता है कि बच्चे को सीखने में कहाँ दिक्कत आ रही है (निदानात्मक परीक्षण)।
उपचारकर्ता: समस्या पहचानने के बाद उचित शिक्षण विधि का प्रयोग करके उसे दूर करना (उपचारात्मक शिक्षण)।
प्रेरक: बच्चों को आंतरिक रूप से प्रेरित करना ताकि वे सीखने के लिए खुद तैयार हों।
6. भारत में बाल-केन्द्रित शिक्षा के प्रयास
स्वतंत्रता के बाद भारतीय शिक्षा व्यवस्था को बाल-केन्द्रित बनाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।
गिजू भाई बधेका का योगदान
इन्हें 'बच्चों का गाँधी' या 'मूँछों वाली माँ' कहा जाता था।
इन्होंने बाल-केन्द्रित शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 'दिवास्वप्न' नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी।
इन्होंने पारंपरिक नीरस शिक्षा का विरोध किया और कहानी, नाटक व खेल के माध्यम से शिक्षा देने की वकालत की।
सर्व शिक्षा अभियान (SSA)
2001 में शुरू किया गया यह अभियान प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण का एक बड़ा कदम था।
उद्देश्य: 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करना।
इसने स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं, शिक्षकों की भर्ती और समावेशी शिक्षा पर जोर दिया।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act 2009)
यह अधिनियम 1 अप्रैल 2010 से पूरे भारत में लागू हुआ।
यह 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाता है।
महत्वपूर्ण प्रावधान:
कक्षा में शारीरिक दंड और मानसिक प्रताड़ना पूरी तरह प्रतिबंधित है।
प्रवेश के लिए किसी भी तरह की स्क्रीनिंग प्रक्रिया या कैपिटेशन फीस नहीं ली जाएगी।
प्राथमिक स्तर पर छात्र-शिक्षक अनुपात 30:1 होना चाहिए।
शिक्षकों के लिए निजी ट्यूशन करना प्रतिबंधित है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020)
नई शिक्षा नीति पूरी तरह से बाल-केन्द्रित और लचीली है।
यह 'रटकर सीखने' के बजाय अनुभवात्मक अधिगम (Experiential Learning) पर जोर देती है।
इसमें 5+3+3+4 का ढाँचा अपनाया गया है जो बच्चों के विकासात्मक चरणों (Developmental Stages) के अनुरूप है।
इसमें कक्षा 6 से ही व्यावसायिक शिक्षा और कोडिंग सिखाने की बात कही गई है।
7. समावेशी शिक्षा और बाल-केन्द्रित दृष्टिकोण
बाल-केन्द्रित शिक्षा का ही विस्तार समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) है।
एक बाल-केन्द्रित कक्षा स्वभाव से समावेशी होती है।
इसमें सामान्य बच्चों के साथ-साथ दिव्यांग (विशेष आवश्यकता वाले) बच्चे भी एक ही छत के नीचे पढ़ते हैं।
शिक्षक को अपनी शिक्षण विधियों में बदलाव (Adaptation) करना पड़ता है ताकि दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित या अधिगम अक्षमता (जैसे डिस्लेक्सिया) वाले बच्चे भी साथ में सीख सकें।
8. परीक्षा उपयोगी महत्त्वपूर्ण बिंदु (Quick Revision)
त्रिध्रुवीय प्रक्रिया: जॉन डीवी ने शिक्षा को त्रिध्रुवीय (Tri-polar) माना है: शिक्षक, बालक और समाज (वातावरण)। (नोट: कुछ जगहों पर पाठ्यक्रम भी लिखा मिलता है, लेकिन डीवी का मुख्य जोर सामाजिक संदर्भ पर था)।
द्विध्रुवीय प्रक्रिया: एडम्स ने शिक्षा को द्विध्रुवीय माना था: शिक्षक और छात्र।
लैब विद्यालय: जॉन डीवी ने शिकागो में 'लैब स्कूल्स' की स्थापना की थी जो प्रगतिशील शिक्षा के प्रयोग केंद्र थे।
कोरी स्लेट: जॉन लॉक ने बच्चे के मन को 'तबुल रासा' (Tabula Rasa) या कोरी स्लेट कहा था, लेकिन बाल-केन्द्रित शिक्षा मानती है कि बच्चे अपने अनुभवों के साथ स्कूल आते हैं, वे खाली नहीं होते।
संरचनावाद (Constructivism): जीन पियाजे और लेव वाइगोत्स्की इस विचारधारा के प्रमुख स्तंभ हैं। वे मानते हैं कि बच्चे ज्ञान का निर्माण अपने पूर्व अनुभवों और सामाजिक अंतःक्रिया से करते हैं।
बाल-केन्द्रित एवं प्रगतिशील शिक्षा
Mock Test: 20 Questions | 20 Minutes
